Book Title: albeli amrapali
Author(s): Mohanlal Chunilal Dhami, Dulahrajmuni
Publisher: Lokchetna Prakashan

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Page 296
________________ अलबेली आम्रपाली २८७ आप यह पढ़ें, कहकर बिंबिसार ने नलिका से पत्र निकाल कर सेठ को दिया। सेठ ने मगध के महामंत्री का पत्र पढ़ा । उन्हें भी ऐसा ही लगा कि बिंबिसार को जाना ही चाहिए।" __उन्होंने कहा- "ठीक है। ऐसे प्रसंग पर जाना कर्तव्य है। विपत्ति काल में यदि सन्तान माता-पिता का सहयोगी न बने तो वह नपुंसकता है। परन्तु आप पुनः कब लौटेंगे?" "यह तो वहां की परिस्थिति पर निर्भर करता है । पिताजी का जब स्वास्थ्य सुधरने लगेगा तब शीघ्र ही लौट आऊंगा।" बिंबिसार ने कहा। "ठीक है । परन्तु नंदा को आपके साथ भेजना थोड़ा ।" "मैं स्वयं समझता हूं। इस अवस्था में उसका लम्बे प्रवास पर जाना उचित नहीं है । इसलिए आपका कथन सही है । आपकी पुत्री यहीं रहे, यही उचित है।' बिंबिसार ने कहा। "जाने का कब निश्चय किया है ?" धनदत्त सेठ ने पछा। 'आप आज्ञा दें तो कल ही चला जाऊं।" दो क्षण सोचकर धनदत्त सेठ ने कहा-'"कल का दिन शुभ नहीं है, परसों आप प्रस्थान कर सकते हैं।" "अच्छा ।" "कल प्रवास की व्यवस्था भी हो जाएगी।" "और कोई व्यवस्था अपेक्षित नहीं है। राजगृही से दो रथ आए ही हैं। और मुझे यहां लौटकर आना ही है। केवल पाथेय अपेक्षित होगा, और कुछ नहीं।" बिंबिसार बोला। सेठ दुकान की ओर चले गए। बिंबिसार ने स्वर्ण-निर्माण की प्रक्रिया बन्द कर दी और अवशिष्ट तेजंतुरी को सावधानीपूर्वक एक ओर रखवा दिया। तत्पश्चात् भोजन आदि से निवृत होकर बिंबिसार अपने खंड में गए। नंदा को स्वामी के प्रस्थान की जानकारी नहीं थी। नंदा की माता को भी इसका आभास नहीं मिला था। वह सदा व्रत, नियम, सामयिक, प्रतिक्रमण तथा उपासना में ही व्यस्त रहती थी । उसके मन में एक ही चिन्ता व्याप्त थी 'एकाकी पुत्र परदेस गया था। उसकी पत्नी भी साथ ही थी। दोनों का क्या हुआ, कोई समाचार नहीं आया। परदेस में वे कोई विपत्ति में फंस गए या सामुद्रिक तूफान में फंस गए या व्यापार में उलझ गए? कोई समाचार न आने के कारण माता के हृदय की व्यथा राख से दबी अग्नि की भांति थी। नंदा भी भोजन कर अपने शयन-कक्ष में गई।

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