________________
२१४ अलबेली आम्रपाली
उस मंद प्रकाश भी कादंबिनी का निद्राधीन शरीर बहुत ही आकर्षक लग रहा
था ।
सुरनंद के मन में इस नवयौवना नारी के यौवन को भोगने की लालसा तीव्रतम हो चुकी थी । उसने धीरे से कहा - "देवि !"
आशाओं के स्वप्निल संसार में खो चुकी थी ।
सुरनंद ने दूसरी बार आवाज लगाई और कादंबिनी के उन्नत उरोजों का स्पर्श किया।
कादंबिनी हड़बड़ा कर उठ बैठी। उसने देखा सुरनंद था। वह कुछ भी नहीं समझ पाई कि सुरनंद भीतर क्यों आया होगा ? उसने कहा - "क्यों ?" "देवि ! इस ओर देखें मेरे हाथ में कटार है यदि आप चिल्लाएंगी तो मेरी कटार आपका काम तमाम कर देगी ।"
" अरे ! तुझे यह क्या सूझा ? तुझे क्या चाहिए ?" "मुझे अपनी इच्छा पूरी करनी है तुम्हारे यौवन का आनंद लेना है ।" काबिन स्थिर रही, घबराई नहीं । इस परिस्थिति में भी उसने मुसकरा कर कहा - "सुरनंद ! क्या तुमने कभी अपनी उम्र का भी ख्याल किया है ?"
" काया वृद्ध होती है, मन कभी वृद्ध नहीं होता"तुम मेरी इच्छा को स्वीकार करो, अन्यथा···।”
कादंबिनी खड़ी हो गई और प्रसन्नता का अभिनय करती हुई बोली"सुरनंद ! तेरी इच्छा को पूरी करने में मुझे किसी भी प्रकार की अड़चन नहीं है । मैं एक नर्तकी हूं । नर्तकी को अपने रूप को कभी - कभी व्यावसायिक भी करना होता है । परन्तु तू जानता है कि पूर्वजन्म का मेरा पति अदृश्य रहकर मेरा रक्षण करता है ।"
13
"यह सब मनगढ़ंत बातें हैं
ऐसा कभी हो नहीं सकता।
कादंबिनी ने सोच लिया कि कामातुर सुरनंद किसी भी उपाय से समझ नहीं सकेगा । वह बोली - "सुरनंद ! कटार नीचे रख दे अपनी इच्छा पूरी कर, आ, मेरे पास बैठ जा । "
सुरनंद हाथ में कटारी थामे ही कादंबिनी के पास बैठ गया। कादंबिनी ने उसके कंधे पर हाथ रखकर कहा - " पगले ! यौवन का सत्कार करने वाला व्यक्ति कटारी के बल पर कुछ भी नहीं पा सकता ।" कहकर उसने सुरनंद का आलिंगन किया । सुरनंद के हृदय में दबी हुई आग भभक उठी । उसने कटारी को एक ओर रख वही किया जो पूर्ववर्ती रूप शलभों ने किया था ।
भोग से भभकी हुई आग वैसी की वैसी रह गई । दूसरे ही क्षण सुरनंद का बाहुपाश शिथिल हुआ। उसकी आंखें फटी की फटी रह गईं। और वह धरती