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२२४ अलबेली आम्रपाली
अन्यान्य सभी सुख पानी पर लकीर की भांति क्षणिक होते हैं।"
परन्तु आपको इस प्रकार अकेला छोड़कर जाना...।" । बीच में ही बिबिसार ने कहा---"तू मुझे किसी जंगल में तो नहीं छोड़ रहा है ? यह महानगरी है । यह यांथशाला भी अच्छी है । अभी मेरा कोई मुख्य प्रयोजन भी नहीं है । तू जा। दो मास के भीतर-भीतर लौट आना।"
धनंजय का मन पीछे हटा । महाराज को अकेला छोड़कर जाने के बदले तो मन की उत्ताल ऊर्मियों को शांत करना अच्छा है, ऐसा उसे लगा। वह बोला"नहीं, महाराज ! जब आप वैशाली जाएंगे तो मैं भी घर हो आऊंगा।" ___"वैशाली जाना होगा भी या नहीं, यह निश्चित नहीं है। लिच्छवी जिसे शत्रु मानते हैं, उसे वे कभी आश्रय नहीं देंगे। मेरे मन में उनके प्रति कोई शत्रभाव नहीं है। किन्तु मैं आम्रपाली का प्रियतम हूं, यह बात उन सबके लिए असह्य है। इसलिए मैं अपने प्रथम यौवन के मंगलगीत आम्रपाली के पास कब जा पाऊंगा, यह सब अंधकार में है।
"धनंजय ! मैं सबसे पहले कहीं स्थिर हो जाना चाहता हूं । राजगृही का राज्य मुझे मिले या न मिले यह कोई विशेष बात नहीं है। मैं अपने पुरुषार्थ से ऐसी स्थिति का निर्माण करना चाहता हूं कि मैं देवी आम्रपाली को गौरवपूर्वक अपने पास रख सकू । लिच्छवियों ने उस पर असह्य अत्याचार किया है। जो नारी किसी राजकुल की कुलवधू बनने का स्वप्न संजो रही थी और यही नारीजीवन का गौरव है, उस नारी को लिच्छवियों ने क्रूरतापूर्वक जनपदकल्याणी बनाया । मैं देवी आम्रपाली को उन विलासी लिच्छवियों के जाल से मुक्त कराना चाहता हूं। मैं जानता हूं कि अभी मैं निःसहाय हूं। किन्तु मेरी श्रद्धा कभी बांझ नहीं है । मैं समय की प्रतीक्षा कर रहा हूं। वर्षा ऋतु के पूर्ण होने पर मैं शंबुकराज से मिलूंगा । उसके सहयोग से मैं अवश्य ही कुछ कर पाऊंगा।"
धनंजय मौन रहा । बिंबिसार के उत्तम विचारों के प्रति वह नत था। बिंबिसार ने कहा- "इसीलिए तू जा और अपने परिवार की देखभाल कर आ। हमें जो कुछ करना है, वह वर्षा ऋतु के बाद ही करना है। मेरी चिन्ता मत करना । मैं तुझे यहीं मिलूंगा।"
और ऐसा ही हुआ।
तीन दिन बाद धनंजय अपने अश्व पर वहां से विदा हुआ। जाते-जाते उसने बिंबिसार के लिए एक दास की व्यवस्था कर दी थी। वह वैशाली होकर जाना चाहता था, परन्तु बिंबिसार ने कहा--"नहीं, धनंजय ! तेरा वैशाली जाना अभी उचित नहीं है। यदि वर्षा भयंकर रूप धारण कर ले तो तेरे प्रवास में व्याघात आ जाएगा। इससे तो सीधे मार्ग से जाना उचित है । रास्ते में केवल दो-तीन नदियां आएंगी। उन्हें पार करना अधिक कठिन नहीं है।"