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अलबेली आम्रपाली २३३
"तो अन्दर आ।" श्यामा धड़कते हृदय से खंड में गई।
"श्यामा ! तेरे निर्मल प्रेम को मैं नहीं भूल सकूगा किन्तु खेद यह है कि मैं भी तेरी जैसी ही एक नारी हूं।" कहती हुई कादंबिनी ने अपना कंचुकीबंध खोला। श्यामा ने कादंबिनी के उन्नत उरोजों की ओर देखा । वह चौंकी।
"महाराज...!"
"श्यामा, मैं तेरी बड़ी बहन हूं। परन्तु तू इस बात को मन में ही रखना। मेरा कार्य पूर्ण होने पर मैं तेरे से अवश्य मिलूंगी।"
श्यामा अवाक् बन गयी थी।
___४८. कौन होगी वह अनिंद्य सुन्दरी धनंजय को उज्जयिनी छोड़े आठ दिन हो गए थे। बिंबिसार को अकेलापन अखरने लगा। वह सवेरे से सांझ तक नगरी में ही घूमने लगा। नगरी जैसे व्यापार में समृद्ध थी, वैसे ही रंगीली भी थी। वहां का मुख्य बाजार प्रातःकाल खुलता और सूर्यास्त से पूर्व बन्द हो जाता। वहां का रारा व्यापार जैनियों के हाथ में था । जैन दिन के अस्त होने से पूर्व अपने-अपने घर चले जाते और भोजन से निवृत्त हो जाते । वे प्राय: रात्रि में भोजन नहीं करते । भोजन करने के पश्चात् कुछ इधर-उधर की बातें कर प्रायः जैन लोग प्रतिक्रमण में लग जाते। परन्तु जैनेतर लोगों की दुकानें रात्रि के प्रथम प्रहर तक खुली रहतीं।
रात्रि के प्रथम प्रहर के बाद इस रंगभरी नगरी की रौनक नगरी की पूर्व दिशा में स्थित रंगबाजार में खिल उठती थी । यह रंगबाजार नित्य नूतन यौवन के मद से छलक उठता था और नगरी के रंगीले युवक और प्रौढ़ व्यक्ति यहां घूमने आते थे। इस बाजार के तीन विभाग थे। एक विभाग में नर्तकियां रहती थीं। दूसरे विभाग में संगीत करने वाली नारियां रहती थीं और तीसरे विभाग में गणिकाएं और वारयोषिताएं रहती थीं।
__ कोई युवक नृत्य की, कोई संगति की और कोई शरीर की आग बुझाने के लिए अपने-अपने अनुकूल स्थानों पर पहुंचते और यह महफिल रात्रि के तीसरे प्रहर के अन्त तक चलती रहती।
बिबिसार को ऐसे बाजार में जाना इष्ट नहीं था, इसलिए वे नगरी के अन्यान्य स्थानों में भ्रमण कर पान्थशाला में आ जाते, किन्तु सिप्रा नदी के आकर्षण से उनका मन तरंगित होता रहता था। इसलिए प्रातःकाल ही वे अपने दास को साथ लेकर सिप्रा की ओर चल पड़ते थे।
सिप्रा के किनारे दो भव्य जिनालय और दस भव्य शिवालय थे। बिबिसार कभी जिनालय में और कभी शिवालय में जाते रहते थे।