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२३४ अलबेली आम्रपाली
दो दिनों से वर्षा हो रही थी। कल रात्रि में पुरजोर वर्षा हुई थी। प्रातः बिबिसार ने सेवक से कहा-"मेरे वस्त्र साथ में ले ले।"
सेवक इस आज्ञा का प्रयोजन समझ चुका था। उसने विनम्रता से प्रार्थना की-"महाराज ! अभी वर्षा रुकी नहीं है और सिप्रा नदी भी आज तरंगित है।'
बिंबिसार बोले-"सिप्रा में स्नान का आनन्द तो उसकी तरंगित अवस्था में ही आता हैवर्षा भले हो, कोई बात नहीं है।"
"जैसी आज्ञा ।"
"कपड़ें और छत्र भी साथ में ले लेना"-कहकर बिबिसार सिप्रा-स्नान के लिए तैयारी करने लगे। उन्होंने साथ में कुछ रौप्य मुद्राएं भी ले लीं क्योंकि स्नान करने के पश्चात् वे वहां खड़े ब्राह्मणों अथवा याचकों को दस-पन्द्रह रोप्य मुद्राओं का दान ना चाहते थे।
सेवक ने बिबिसार के कपड़े लिये और श्वेत कोशेय का छत्र भी ले लिया।
सिप्रा के चन्द्रघाट पर आकर बिंबिसार ने देखा कि नदी के सारे घाट पानी में डूब गए हैं। अति तीव्र प्रवाह से मानो सिप्रा का यौवन मदोन्मत्त हो रहा था।
स्नान के लिए आने वाले लोग किनारे पर खड़े-खड़े स्नान करने लगे। भीतर जाने का कोई साहस नहीं कर रहा था। साहस कैसे करे? नदी का प्रवाह तूफानी था। जिस प्रकार तूफानी यौवन का धक्का असह्य होता है वैसे ही तूफानी जलप्रवाह में गिरना भी अशक्य हो जाता है।
बिंबिसार ने सिप्रा नदी में कूदने का निश्चय किया। विबिसार स्नान के लिए नदी में कूदे, उससे पूर्व ही उनके कानों में यह आवाज टकराई-"देवी की जय हो।"
बिबिसार ने मुड़कर देखा, गांधार की आठ सशक्त स्त्रियां एक शिविका को उठाकर ला रही थी और वहां पर खड़े चार-छह ब्राह्मण देवी की जय बोल रहे
बिंबिसार ने यह भी देखा कि पालकी से एक गौरवर्ण हाथ बाहर निकला और कुछेक रौप्य मुद्राएं ब्राह्मणों की ओर फेंकी।
जहां बिंबिसार खड़ा था, पालकी उससे कुछ दूर जाकर रुकी।
बिंबिसार ने मन में सोचा, मैं स्वयं इस घाट पर खड़ा हूं इसलिए सम्भव है स्नान के लिए आई हुई रमणी संकोच करेगी क्या करूं? अन्य घाट पर जाऊं या शीघ्रता से स्नान कर लौट जाऊँ?
बिबिसार कुछ निर्णय ले, इससे पूर्व ही पास वाले घाट से कोलाहल सुनाई देने लगा। लोग चिल्ला रहे थे 'बचाओ''बचाओ'''बेचारी वृद्धा लड़खड़ाकर नदी के प्रवाह में गिर पड़ी है''हाय''हाय ! 'बचाओ' 'बचाओ।