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२७० अलबेली आम्रपाली
भय यह है कि प्रयोग सफल हुआ है, इस बहाने कुछ हो जाए। आप का स्वास्थ्य कैसे है ?" मन्त्रीश्वर ने पूछा।
"जब आप नाग सन्निवेश की ओर गए थे, तब मैं बीमार पड़ा था। अब कुछ ठीक हूं।"
"राजवंद्य क्या कहते हैं ?"
"वे इसे अवस्थाजन्य निर्बलता बताते हैं । मुझे लगता है कि जब जीवक यहां आ जाएगा तब उससे चिकित्सा करानी है। मैंने सुना है कि जीवक ने कायाकल्प का विज्ञान सीखा है और शल्य-चिकित्सा में वह निपुण बना है।' __ "हां, महाराज ! मैंने भी जीवक की बहुत प्रशंसा सुनी है । आचार्य आत्रेय को अपने शिष्य जीवक पर गर्व है । वास्तव में जीवक मगध का महान् पुरुष बनेगा। वर्षाकार भी कूटनीति और राजनीति में बेजोड़ बना है।" महामन्त्री ने कहा।
इस चर्चा के एक सप्ताह बाद धनंजय तक्षशिला की ओर रवाना हुआ। वह अपने साथ दो रथ और दस अश्वारोही ले गया था।
परन्तु तक्षशिला की ओर प्रस्थान करने से पूर्व उसने सूरसेन नामक एक विश्वस्त रक्षक को उज्जयिनी की ओर रवाना कर दिया था। सूरसेन के साथ उसने बिंबिसार की पांथशाला का नाम-पता तथा एक पत्र भी लिखकर भेजा था। __ इस प्रकार वह कुछ निश्चित होकर तक्षशिला की ओर चल पड़ा था।
इधर आम्रपाली का संदेशवाहक उज्जयिनी में चार दिन रुककर लौट आया था। क्योंकि पांथशाला में अब दामोदर भी नहीं था । और बिंबिसार तो नववधु के प्रेम में इतना खो गया था कि उसे अन्य किसी की स्मृति नहीं होती थी। वह अपनी दुनिया को केवल नंदा में ही देखता था। ___ संदेशवाहक ने पांथशाला के संचालक से बात-चीत की। पांथशाला के संचालक ने कहा--"जयकीर्ति सेठ कहीं बाहर गए हैं। उनका एक व्यक्ति यहां रहता था, वह भी उन्हीं के साथ गया है। वे किस गांव में गए हैं, यह पता नहीं
इतना होने पर भी संदेशवाहक वहां चार दिन रुका। नगरी बड़ी थी। वेचारा कहां जाए और किससे पूछे ? वह निराश होकर लौट गया। __देवी आम्रपाली के मन में कुछ सन्तोष भी हुआ कि स्वामी का संदेश न मिलने का अन्य कोई कारण नहीं है । केवल एक ही कारण है कि वे कहीं प्रवास में गए हैं।
परन्तु ज्योतिषी की भविष्यवाणी? तो फिर युवराज ने अन्य विवाह कर लिया होगा। नहीं, नहीं, यह कभी