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२६८ अलबेली आम्रपाली
"परन्तु···” अटकते-अटकते कादंबिनी बोली । परन्तु वह और अधिक कुछ भी कह नहीं सकी ।
आचार्य बोले- "यदि तेरी इच्छा न हो तो मेरा कोई दबाव नहीं है । " "बापू! आर्य सुमन्त जैसे श्रेष्ठ पुरुष की सहधर्मिणी होना कोई छोटी बात नहीं है परन्तु मैं कुल - जाति हीन ।"
आचार्य ने हंसते हुए कहा- "पुत्रि ! वैद्य नाड़ी का परीक्षण कर निदान करता है. जाति देखकर निदान नहीं करता । जाति अवास्तविक है । संस्कार ही सर्वश्रेष्ठ होता है । आर्य सुमंत एक पवित्र ब्राह्मण है। उसके मन में जाति-भेद जैसा कुछ नहीं है ।"
कादंबिनी ने सहमति सूचक भाव से आचार्य के चरण पकड़ लिये । आचार्य ने आशीर्वाद दिया । प्रयोग चल ही रहा था । मात्र पन्द्रह दिनों में कादंबिनी का मुरझाया हुआ यौवन खिल उठा काया पर लालिमा नाचने लगी.
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प्रयोगकाल का एक महीना पूरा हुआ | कादंबिनी नूतन यौवन, नूतन आरोग्य, नूतन चेतना और नूतन भावधारा की स्वामिनी बन गई ।
मृगसिर मास के प्रथम सप्ताह में ही आचार्य ने आर्य सुमंत और कादंबिनी का विवाह सम्पन्न करा दिया ।
बिनी के हृदय में कुलवधू बनने की जो तमन्ना थी, वह आज साकार हो गई । जीवन में यमराज की छाया के समान आया हुआ अभिशाप शीतल
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बल्ली के समान आशीर्वाद बन गया ।
मगध की राजधानी राजगृही में कादंबिनी की खोज महीनों से चल रही
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थी परन्तु उसका कोई पता नहीं लग रहा था ।
मगध के महामन्त्री यह चाहते ही थे कि लोग यह बात जान जाएं कि कादंबिनी एक विषकन्या है ।
aria की खोज में महामन्त्री ने अनेक गुप्तचरों को वैशाली और उसके आस-पास के क्षेत्रों में भेजा। सभी गुप्तचर निराश होकर लौटे । महामन्त्री और मगधेश्वर को बहुत आश्चर्य हुआ । अन्त में उन्होंने यही माना कि वैशाली के सीमा रक्षकों ने उसे पकड़ लिया होगा । या तो कादंबिनी ने आत्महत्या कर ली होगी या रक्षकों ने उसका वध कर डाला होगा ।
धनंजय राजगृही में आ गया था । एकाध महीना रहकर वह पुनः उज्जयिनी की ओर जाने वाला था ।
परन्तु महामन्त्री ने उस पर एक कड़ी जिम्मेवारी डाल दी और उज्जयिनी की ओर किसी दूसरे को भेजने का प्रबन्ध किया ।
इसलिए धनंजय को तत्काल तक्षशिला जाने की तैयारी करनी पड़ी ।