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अलबेली आम्रपाली २३५
चिल्लाते सभी थे, परन्तु तूफानी सिप्रा में कूदकर वृद्धा को बचाने का साहस किसी में नहीं था।
बिंबिसार ने सिप्रा की ओर दृष्टि की 'पूर के प्रवाह में कोई बह रहा है ऐसा प्रतीत हुआ.'उन्होंने कुछ भी विचार किए बिना ही उसी क्षण उफनती नदी में छलांग लगा दी।
घाट पर चन्द्रप्रद्योत नृपति की प्रिय नर्तकी कामप्रभा आई थीउसने पालकी की जाली को हटाकर उस साहसिक व्यक्ति की ओर देखा। उसके अतिरिक्त पालकी उठाने वाली गंधारियां, अन्यान्य दास-दासियां भी बिंबिसार की ओर देखने लगीं।
बिंबिसार का सेवक हांफता-हांफता किनारे के पास आया और 'महाराज! महाराज !' चिल्लाने लगा।
कामप्रभा ने एक परिचारिका को निकट बुलाकर कहा-"तू उस सेवक के पास जा और उससे पूछ कि इस तूफानी प्रवाह में कूद पड़ने वाला तरुण पुरुष कौन है ?"
परिचारिका तत्काल बिंबिसार के सेवक के पास पहुंची और बोली-"इस उफनती नदी के प्रवाह में झंझापात करने वाला पुरुष कौन हैं ?"
"मेरे स्वामी हैं 'अरे रे अब उनका क्या होगा? इस प्रवाह में अब वे कहीं नजर नहीं आ रहे हैं । हाय ! अब क्या होगा?"
दासी ने कहा- "तेरे स्वामी का क्या नाम है ?" "जयकीति ।" "वे कहां रहते हैं ?"
सेवक ने पांथशाला का नाम बताया । दासी को आश्चर्य हुआ। वह लौटकर आई । कामप्रभा नर्तकी सिप्रा की उत्ताल तरंगों को देख रही थी। अकस्मात् लोगों ने हर्ष ध्वनि की। कामप्रभा भी वर्षा की परवाह किए बिना पालकी से बाहर निकली और पुलकित मन से सिप्रा के जल-प्रवाह की ओर देखने लगी। ___ उसने देखा, एक सुन्दर तरुण किसी को उठाकर, पूर्ण श्रमित होकर, घाट की ओर तैरता हुआ आ रहा है।
आसपास के सभी घाटों से हर्षनाद होने लगा।
कोई कहता-शाबास नौजवान ! धन्य है तेरी जननी को। कोई कहताशाबास मित्र ! शाबाश !
बिंबिसार नदी-प्रवाह में डूबती वृद्धा को बहुत प्रयत्नपूर्वक उठाकर घाट की ओर आ रहे थे। प्रवाह का वेग बहुत तीव्र था। बिबिसार उस तीव्रता के प्रतिकूल तरकर आ रहे थे और लोगों के आश्चर्य के साथ वे चन्द्रघाट की दूसरी ओर आए