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२५६ अलबेली आम्रपाली
पर विश्वास रखना चाहिए । आपने एक बार कहा था कि अनजानी वनस्पति के कुछ बोरे एक वाहन पर आ गए थे । वे कहां हैं ?" बिंबिसार ने कहा।
"हां आए थे। उनमें से कुछ तो बिक गये और कुछ बाहर फेंक डाले।" "और वह राख !"
धनदत्त सेठ हंस पड़े। उन्होंने हंसते-हंसते कहा- "देख, सामने के कोने में दस बोरे भरे पड़े हैं। दूसरा कोई माल है नहीं, इसलिए इन्हें रख छोड़ा है, अन्यथा मैं इनको भी सिप्रा में प्रवाहित कर देता।"
जयकीति ने उस संकेतित कोने की ओर आश्चर्य भरी दृष्टि से देखा ! सेठ ने कहा-"तुझे देखना हो तो देख ले । मैं एक-दूसरे पदार्थ की खोज कर ल ।” __ दूसरे कोने में कुछेक मिट्टी की कोठियां और घड़ों की बडेर पड़ी थी। धनदत्त उनकी ओर गया और बिंबिसार दस बोरे वाले कोने की ओर बढ़ा।
दस बोरों में से नौ सीलबंद थे। एक का मुंह खुला था । बिंबिसार ने उसमें हाथ डाला । उसके हाथ में वजनदार पदार्थ आया । वह चौंका। राख कभी भारी होती नहीं । सेठ ने इस दृष्टि से क्या इसकी परीक्षा नहीं की?
बिबिसार ने बार-बार उस राख की परीक्षा की और उसका चेहरा अचानक खिल उठा । उसने समझ लिया कि यह राख नहीं है, तेजंतुरी है । यह करोड़ों के मूल्य की वस्तु है । उसे याद आया, उसने ऐसी तेजंतुरी राजगृह में देखी थी। उसने सोचा, सेठ को जानकारी देनी चाहिए, किंतु दूसरे ही क्षण उसने सोचा, नहीं शुभ समाचार भी कभी-कभी प्राणलेवा बन जाता है। इस विषय की चर्चा एकान्त में तथा धीरे-धीरे करनी है। ___ यह सोचकर वह, जहां सेठ खड़े थे, वहां आया। धनदत्त सेठ घड़ों में भरे माल को देख रहे थे । बिंबिसार को देखते ही सेठ ने पूछा-"क्या राख को देख लिया?"
___ "हां, परन्तु सेठजी ! भाग्य की लीला अपरम्पार है। आज जो गोदाम रिक्त लग रहा है, वह कल भर जाएगा।" ____"तुम्हारी बात ठीक है। कोई पाप कर्म का उदय है, इसलिए यह विपन्नता देखनी पड़ रही है।" कहकर सेठ ने एक घड़े को उतारा। उसमें पारद या। उन्होंने कहा-"दुकान में पारद बिक चुका था। इसलिए गोदाम में पारा है था नहीं, यह देखने यहां आया था। ज्यादा तो नहीं, परन्तु पांच सेर जितना पारद अवश्य है।"
बिबिसार ने कहा- ''क्या पारद का यह घट ले चलूं ?" "नहीं, कल यहीं आकर कूपिका भर कर ले जाएंगे।" सेठ ने कहा। बिंबिसार बोला-"क्या कल राजसभा में जाना है ?" "नहीं भाई, नहीं। वहां जाकर क्या करना है ? महाराजा तो यहां हैं नहीं।