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२२२ अलबेली आम्रपाली
इस बात को सुनकर आम्रपाली का हृदय अत्यन्त प्रफुल्लित हुआ था । उसने मन-ही-मन यह भी सोचा कि किसी संदेशवाहक को भेजकर युवराज को यहां बुला लिया जाए । तत्काल ही दूसरे क्षण उसने सोचा, वे उज्जयिनी गए हैं या . आस-पास की किसी नगरी में पहुंचे हैं, यह कहना कठिन है। इसलिए यही अच्छा होगा कि जब उनका कोई संदेशवाहक यहां आएगा तब उसके साथ अपनी मनोभावना भी कहलवा दूंगी।
बिबिसार और धनंजय - दोनों सुखपूर्वक उज्जयिनी पहुंए गए। दोनों एक पांथशाला में ठहरे और बिंबिसार ने सबसे पहले अपनी प्राण-प्यारी आम्रपाली को संदेश भेजने का कार्य किया ।
धनंजय ने ऐसे एक व्यक्ति को खोज निकाला था जो त्वरा से वैशाली जाए और महाराज का संदेश आम्रपाली को दे और आम्रपाली का संदेश लेकर आ जाए । उस व्यक्ति के पास एक तीव्रगामी ऊंट था, इसलिए त्वरा से जाने-आने में कोई कठिनाई यहीं थी ।
बिबिसार ने दो ताम्रपत्रों पर प्रियतमा को प्रथम संदेश लिखा था । इसमें प्रवास का सारा वृत्तान्त और अपने मन की बात लिख डाली थी ।
मार्ग में वर्षा आए और ताम्रपत्र भीग न जाए इसलिए उसको एक तांबे की नली में डालकर उस व्यक्ति को सौंपा था।
दो दिन विश्राम कर तीसरे दिन धनंजय और बिंबिसार नगरी का निरीक्षण करने निकले । दोनों ने आनर्त देश के मध्यमवर्गीय व्यापारी का वेश बनाया था । इस वेश के लिए आवश्यक सामग्री धनंजय बाजार से ले आया था और यहां दोचार मास रहना पड़े, इसलिए वणिक्-वेश में रहना ही निश्चय किया था । नगरी भव्य और समृद्ध थी । लोग सुखी और उदार थे। नगरी का मुख्य बाजार विशाल और विस्तृत था ।
दोनों मुख्य बाजार से निकले। दोनों ने देखा कि उज्जयिनी बहुत बड़ा व्यापारिक केन्द्र है । व्यापार बहुत समृद्ध है। विविध वेशधारी व्यक्ति दुकानों पर क्रय-विक्रय में लीन थे। स्त्रियां भी खरीददारी करती थीं। दो-दो व्यक्ति बैठ सकें, ऐसी अनेक प्रकार की शिविकाएं बाजार में आ-जा रही थीं। दोनों बाजार की रौनक देखते-देखते धीरे-धीरे आगे बढ़ रहे थे । उन्होंने देखा, एक सुखपाल सामने से आ रहा है । दोनों एक ओर खड़े हो गए। उस सुखपाल को उठाने वाले पुरुष नहीं, गांधार देश की श्यामवर्ण वाली आठ सशक्त स्त्रियां थीं । आगे-पीछे सशस्त्र रक्षक दल चल रहा था । सुखपाल बन्द था । एक स्थान पर जालीदार बारी थी । सुखपाल में कौन है, यह बाहर से दिखाई नहीं देता था ।... दोनों उस सुखपाल को देखते रहे ।