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अलबेली आम्रपाली २२३
अधिक आश्चर्य की बात तो यह थी कि सुखपाल को देखकर लोग 'देवी की जय हो' यह हर्षध्वनि कर रहे थे।
बिंबिसार ने कहा- "आश्चर्य ! स्त्रियां इस प्रकार सुखपाल को उठाती हैं, यह पहली बार देखा क्या कोई राजमहिषी है ?" ___ सुखपाल स्वर्ण'का था। उसमें जटित रत्नराशि झिलमिल-झिलमिल कर रही थी। धनंजय बार-बार सुखपाल की ओर देख रहा था। वह बोला-"राजमहिषी इस प्रकार बाहर निकले, यह सम्भव नहीं है।"
जहां बिबिसार और धनंजय खड़े थे वहां से सुखपाल आगे बढ़ गया। धनंजय ने एक नागरिक से प्रश्न किया- "महाशय ! क्या इस सुखपाल में राजमहिषी बैठी थीं?"
"नहीं, राजमहिषी तो प्रासाद से बाहर निकलती ही नहीं. 'आप परदेशी-से लगते हैं, क्यों?"
"हां, महाशय ! हम आनर्त देश के व्यापारी हैं ।" बिंबिसार ने कहा। "अच्छा, तो फिर आप कैसे जानेंगे ? इस सुखपाल में देवी कामप्रभा थी।" "देवी कामप्रभा ?"
"हां, उज्जयिनी की श्रेष्ठ नर्तकी और नवजवान राजा चंद्रप्रद्योत की स्वप्नमाधुरी !" कहकर नागरिक चलता बना।
धनंजय ने बिंबिसार की ओर देखकर कहा--"स्वामिन् ! यह तो कोई नयी नर्तकी लगती है । मैंने वसंतप्रभा नर्तकी के विषय में तो सुना था।" __ "चलो।" कहकर बिंबिसार आगे बढ़ा।
भोजन की व्यवस्था पांथशाला में ही की गई थी। वहां एक ब्राह्मण शुद्ध और सात्त्विक भोजन तैयार करता था। दोनों ने वहां भोजन किया और विश्राम करने के लिए अपने खण्ड में आ गए। विश्राम करते-करते धनंजय ने कहा"महाराज ! एक प्रार्थना करना चाहता हूं।"
"मित्र ! मैंने तेरा मभ परख लिया है। घर छोड़े एक वर्ष हो रहा है।" "महाराज'..!" "क्या मेरा अनुमान गलत है ?" "नहीं, किन्तु आपने यह अनुमान किया कैसे ?"
बिंबिसार ने हंसते हुए कहा-"धनंजय ! मन की बात सदा आंख में उभरकर आ जाती है । तू राजगृही जा । अपने परिवार के साथ कम-से-कम एक मास तक रह ''यह उचित भी है। क्योंकि घरवाली भी तो...।"
"नहीं, महाराज ! ऐसी कोई बात नहीं है ।"
"धनंजय ! सबका मन एक-सा होता है । विरह की व्यथा सभी स्त्री-पुरुषों में एक मनोभाव पैदा करती है । वह छटपटाहट जब तक नहीं मिटती तब तक