________________
अलबेली आम्रपाली २२५
इसलिए धनंजय ने गजगही का सीधा मार्ग लिया।
चंपा के विषवैद्य गोपालस्वामी सातवें दिन चंपा पहुंचे । उनका आश्रम नगरी की पश्चिम दिशा में एक कोश दूर था। गोपालस्वामी के आगमन पर उनके शिष्य बहुत आनन्दित हुए।
कादंबिनी राहुल को भेजकर प्रतिदिन यह ज्ञात कराती थी कि विषवैद्य आए हैं या नहीं। कल ही राहुल ने वैद्यराज के आगमन की सूचना कादंबिनी को दी थी।
इस समाचार से प्रसन्न होकर पुरुषवेशधारिणी कादंविनी ने राहुल को एक स्वर्णमुद्रा पारितोषक रूप में दी। राहुल बहुत खुश हुआ। कादंबिनी ने कहा"राहल ! कल मैं उनसे मिलने जाऊंगा।"
“महाराज ! मैं आपको वैद्यराज के आश्रम में ले जाऊंगा। आप कब
जाएंगे ?"
"सूर्योदय से पूर्व ही।"
"ठीक है । मैं तैयार रहूंगा।" कहकर राहुल स्वर्णमुद्रा को देखता-देखता चला गया।
गोपालस्वामी के आगमन का समाचार सुनकर कादंबिनी बहुत प्रसन्न हुई। उसके मन में अनेक विचार आने लगे। वंद्यराजजी के समक्ष किस प्रकार बात करनी है ? वे मेरा कार्य स्वीकार करेंगे या नहीं ? क्या मैं उनको अपनी सारी बात बता दूंगी ? चार व्यक्तियों की मृत्यु का रहस्य भी क्या उनको बताना पड़ेगा? इस प्रकार के अनेक प्रश्न उसके मन में उभर रहे थे। ___ कादंबिनी का पूरा दिन इन विचारों की उधेड़बुन में बीत गया । रात में भी नींद नहीं आई। उसने श्यामा को प्रातः सूर्योदय से पूर्व ही वहां से जाने की बात बता दी थी, इसलिए श्यामा ने पूरी व्यवस्था पहले ही कर दी। कादंबिनी स्नान आदि से निवृत्त होकर तैयार हो गई।
कादंबिनी अपने सुभद्र अश्व पर बैठकर वहां से चली । राहुल उसके पासपास चलने लगा।
वर्षा के कारण चारों ओर पानी भर गया था। मार्ग में कीचड़ भी बहुत था। किन्तु राहुल कादंबिनी को एक पगडण्डी के मार्ग से आश्रम की ओर ले गया।
गोपालस्वामी का आश्रम अनेक वर्षों से चंपा में ही था। किन्तु कादंबिनी का वहां जाने का कभी प्रसंग बना ही नहीं, इसलिए दूर से ही आश्रम को देखकर वह चौंकी।
आश्रम के चारों ओर एक उपवन था । वह उपवन विविध प्रकार के वृक्ष, गुल्म और लताओं से सुशोभित था।