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२१२ अलबेली आम्रपाली
ही यहां कोई प्रवासी रात भर रहता था। इसलिए तेल का दीपक ही आवश्यकतावश जलाया जाता था।
प्रौढ़ रक्षक का नाम सुरनंद था। उसने पांथशाला की चारों कोठरियों को देखा और एक कोठरी पसंद कर उसमें कादंबिनी के सोने की व्यवस्था कर दी। स्वयं के होने की व्यवस्था उसने बाहर ही की। __दीपक का प्रकाश मंद था। सुरनंद पानी का घड़ा भर लाया। दोनों ने दूधरोटी का व्यालू किया। ___ कादंबिनी के सामने एक बड़ी कठिनाई यह थी कि जो पुरुषवेश उसने पहन रखा था, उसको बदलने के लिए उसके पास कोई दूसरा वेश नहीं था। उसके पास चम्पा में रहने योग्य पर्याप्त धन था । उसके पास कुछ अलंकार भी थे। ये सब वस्तुएं उसने अपने पास ही रखी थीं। ____ कादंविनी ने अपनी शय्या पर बैठते-बैठते कहा-"सुरनंद ! देख, हमें जल्दी उठकर यहां से प्रस्थान कर देना है।" ___ "जी !" सुरनंद ने अपने मंच पर बैठे-बैठे ही कहा।
कादंबिनी अपनी कोठरी में गई। उसने देखा, वहां वातायन का नामोनिशान नहीं था । हवा के बिना नींद कैसे आएगी? वह पुनः बाहर आई, बोली"सुरनंद ! इस कोठरी में वातायन तो है ही नहीं।"
"मैं पहले ही देख चुका हूं। किसी भी कोठरी में वातायन नहीं है।" "तब तो गर्मी में झुलसना पड़ेगा।"
"आपको यदि एतराज न हो तो आप बाहर सो जाएं और मैं भीतर सो जाऊंगा।"
"नहीं, मैं द्वार खुला रखकर भीतर ही सो जाऊंगी", कहकर कादंबिनी कोठरी में चली गई।
सुरनंद ने सोचा-कल हम चंपा पहुंच जाएंगे। इस रूपवती नर्तकी को भोगने का वहां अवमर नहीं मिलेगा यह स्थल बड़ा उपयुक्त है। 'पांथशाला में कोई पथिक भी नहीं है । वृद्ध संचालक बाहर सोता है. यदि आज का अवसर चूक जाऊंगा तो फिर ऐसा अवसर कभी हाथ नहीं लगेगा।
यह सोचकर वह अपनी शय्या पर करवटें बदलने लगा।
जो रूप की ज्वालाओं से घिरा रहता है उसे नींद नहीं आती। जो काम की आंधी में फंस जाते हैं, उनकी बुद्धि भी नष्ट हो जाती है।
सरनंद को यह ज्ञात नहीं था कि जिस रूप-यौवन पर वह चार दिनों से पागल हो रहा है वह रूप नहीं, भयंकर विष है । सर्प काटता है तो उसका इलाज किया जा सकता है. उस विष को दूर किया जा सकता है परन्तु इस नारी के रोम-रोम में व्याप्त विष तो मौत ही देता है ।