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१९० अलबेली आम्रपाली
महाराजा प्रसेनजित ने उसे देश-निष्कासन दे दिया था।" नारीकंठ ने आश्चर्य के साथ कहा। __ ये दोनों अश्वारोही और कोई नहीं, कुमार शीलभद्र और देवी कादंबिनी थी। नैशभ्रमण, जलविहार और यौवन की मस्ती का आनंद लेने के लिए शीलभद्र का यह पूर्व निर्धारित उपक्रम था। शीलभद्र आज अत्यन्त निराश हो गया था, क्योंकि वह बिंबिसार को न पकड़ ही सका और न मार ही सका। मध्याह्न तक उसने काफी दौड़धूप की। फिर उसे यह ज्ञात हुआ कि बिंबिसार अपने साथी के साथ छिटक गया है। सर्वश्रेष्ठ सुन्दरी आम्रपाली को अपनी बनाने की उसकी भावना आज पुनः नष्ट हो गई थी। इस प्रकार अत्यन्त निराशा से ग्रस्त शीलभद्र मन को शांत करने के लिए नैश-भ्रमण के लिए निकल पड़ा था। पूर्व योजना के अनुसार वह देवी कादंबिनी को लेकर इस वन-प्रदेश में आया था। वह बोला-"प्रिये ! मगधेश्वर ने अपने पुत्र को निर्वासित नहीं किया था, परन्तु उन्होंने एक नाटक खेला है। उन्होंने अपने युवराज को वैशाली के संभ्रान्त पुरुषों का नाश करने के लिए षड्यंत्रकारियों का नेता बनाकर यहां भेजा था।"
"षड्यंत्र ?"
"हां, भयंकर षड्यंत्र ! इस षड्यन्त्र में हमारे राज्य के तीन स्तंभ धराशायी हो गए । वैशाली का गुप्तचर विभाग अत्यन्त जागरूक है । षड्यन्त्र का पता लग गया और वह नालायक यहां से पलायन कर गया।"
कादंबिनी मन-ही-मन हंसी। वह बोली--"महाराज ! क्या वह दुष्ट गुप्तवेश में यहां रह रहा था ?"
"हां, उस दुष्ट ने हमारे गौरव को खंडित कर डाला। वह हमारी जनपदकल्याणी का प्रियतम बनकर उसी के साथ रह रहा था।" शीलभद्र ने कहा।
"मैंने तो सुना था कि देवी आम्रपाली बहुत चतुर है।" "वह चतुर और बुद्धिमती भी है, किन्तु मोह अंधा होता है।"
"सच कहा आपने प्रियतम ! मोह मनुष्य को अंधा बना देता है। किन्तु महाराज ! हम इस प्रकार कहां तक चलते रहेंगे।" कादंबिनी ने चतुराई से प्रसंग बदल डाला।
"प्रिये ! अब हमें बहुत दूर नहीं चलना है। नदी के किनारे एक सुन्दर उपवन है । पहले हम वहां चलेंगे, फिर जल-विहार करेंगे"। शीलभद्र ने कादंबिनी की ओर मुंहकर कहा।
"तो हम कुछ शीघ्रता करें", कादंबिनी ली। "क्यों?" "मीठी मध्यरात्रि की मीठी मस्ती।"