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अलबेली आम्रपाली २०१
कुछ क्षणों पश्चात् गोपालस्वामी बोले – “वैसी स्त्री को कितना ही भयंकर विषधर क्यों न इसे, वह सर्प मर जाता है, स्त्री का कुछ नहीं बिगड़ता । कभी-कभी सर्प मूच्छित हो जाता है। शशक, हिरण, बकरी आदि प्राणियों का यदि विषकन्या स्पर्श भी करती है, चुंबन लेती है तो वे प्राणी तत्काल मर जाते हैं । "
सभी विचारमग्न हो गए। वैशाली एक विशाल नगरी है । उसमें विषकन्या की खोज कैसे की जाए ? विषकन्या इधर-उधर फिरती तो नहीं है । वह गुप्त ही रहती है । इसलिए संभव है उसको कहीं छुपाकर रखा होगा । वह गुप्तस्थान कौन-सा है ? कहां है ?
सभी को विचारमग्न देखकर गोपालस्वामी बोले – “गणनायकजी ! यदि आपको और कुछ विशेष नहीं पूछना हो तो मैं अपने स्थान पर चला जाऊं ।"
" जरूर आपने यहां आकर हमारे पर उपकार किया है। आप चाहें तो आपके रहने की व्यवस्था नगर के बाहर किसी उद्यान में की जा सकती है ।"
"नहीं, नहीं, मैं तो अतिथिगृह में रह लूंगा ।" कहकर गोपालस्वामी खड़े हुए। सभी ने उनको भावभीनी विदाई दी ।
एक सेवक उनको पहुंचाने अतिथिगृह की ओर गया ।
गोपालस्वामी के जाने के बाद महाबलाधिकृत ने प्रश्न रखा-' - "वैद्यराज की बात में कुछ तथ्य अवश्य है । परन्तु विषकन्या की खोज कैसे की जाए ?"
चरनायक सुनंद ने कहा - " मेरे मन में एक विचार आता है। गुप्तचरों की अंतिम खोज अनुसार बिंबिसार और उसका साथी वैशाली की सीमा को छोड़कर आगे चले गए हैं । परन्तु वैद्यराज की बात सुनने के बाद यह अनुमान होता है कि बिसार इस षड्यंत्र में संलग्न थे और यह बात विषकन्या के प्रश्न से सिद्ध होती है ।"
"कैसे?" सिंह सेनापति ने पूछा ।
"मेरा सद्यस्क अनुमान यह है कि मगध के युवराज बिबिसार इसी षड्यंत्र के साथ यहां आए थे और विषकन्या के साथ नगर में घुस गए। देवी आम्रपाली उनमें आसक्त हुई और इससे बिंबिसार को रहने का सुरक्षित स्थान और षड्यंत्र को क्रियान्वित करने का अपूर्व और निर्भीक अवसर प्राप्त हो गया। कुछ दिन तक वैशाली की राज्य-व्यवस्था के निरीक्षण में लगे रहे। जब सब कुछ उन्हें ज्ञात हो गया तब उन्होंने अपने षड्यंत्र को गतिमान किया । कुमार शीलभद्र सप्तभूमि प्रासाद पर आक्रमण करेगा, यह बात उन्हें पहले ज्ञात हो गई होगी, इसलिए उन्होंने शीलभद्र को समाप्त करने की बात आम्रपाली को समझाकर स्वयं यहां से भाग गए और फिर गुप्तवेश में रहने वाले उनके साथी शीलभद्र का नामोनिशान मिटाने में सफल हो गए ।"