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अलबेली आम्रपाली १६६
४२. पलायन का षड्यंत्र
चरनायक सुनंद, मिहिर महाली, दूसरे तीन गणनायक और नगररक्षक सूर्योदय के तत्काल बाद सिंह सेनापति के भवन पर आ गए। सिंह सेनापति भी उपासना से निवृत्त हो गए थे। सभी गोपालस्वामी की प्रतीक्षा कर रहे थे ।
शीलभद्र की मृत्यु के विषय में चर्चा चल रही थी । चरनायक ने कहा"नदी किनारे पर स्थित उपवन में अश्वों के पदचिह्न मिले थे । पदचिह्न का ज्ञाता राजपुरुष पदचिह्न देखने गया, तब वहां अनेक अश्वों के पदचिह्न मंडित हो चुके थे । क्योंकि कुमारश्री के अंतिम दर्शन करने के लिए अनेक व्यक्ति वहां आ गए थे। इसके अतिरिक्त बात यह थी कि आम्रपाली के कथनानुसार बिंबिसार वैशाली से दूर चले गए थे। मुझे यह संशय था कि वे यहीं कहीं छुपकर षड्यंत्र का संचालन कर रहे हैं, परन्तु वे उज्जयनी के रास्ते पर हैं, यह समाचार सीमारक्षक ने दिए हैं।"
सिंह, सेनापति ने कहा - "सुनंद ! बिंबिसार मुझे अत्यन्त निर्दोप लगे हैं। लोगों के हृदय में यदि रोष नहीं जागा होता तो मैं उन्हें सप्तभूमि प्रासाद में ही रहने देता । परन्तु यह उचित ही रहा । अब सच्चा गुनहगार कौन है, इसकी खोज आसानी से हो सकेगी । "
महाबलाधिकृत मिहिर महाली कुछ कहे, इससे पूर्व ही गोपालस्वामी ने कक्ष में प्रवेश किया। सभी ने खड़े होकर विषनिष्णात वैद्य का अभिवादन किया ।
कुशल समाचार पूछने के पश्चात् सिंहनायक ने कहा - "वैद्यराज ! इस मृत्यु के रहस्य का उद्घाटन अब आप ही कर सकते हैं ।"
गोपालस्वामी बोले - " मृत्यु का रहस्य तो हाथ लग गया है । परन्तु षड्यंत्रकारी कौन होगा, इसे जानना मेरा विषय नहीं है ।"
सिंहनायक बोले- 'आप उचित कहते हैं । मृत्यु का भेद प्राप्त हो जाने पर हम सही रास्ते से खोज कर सकेंगे ।"
"अब मैं अपनी खोज के आधार पर जो तथ्य ज्ञात हुआ है, वह आपके समक्ष प्रकट करता हूं ।” कहकर गोपालस्वामी ने दो क्षण तक आंखें बन्द कर लीं। फिर वे धीरे से बोले -- " महानुभावो ! कुमार शीलभद्र की मृत्यु विष के स्पर्श से हुई है । यह स्पर्श केवल उनके होंठों पर हुआ है. इसके आधार पर दो कल्पनाएं की जा सकती हैं । एक तो यह कि कुमार ने किसी विषाक्त वस्तु का चुंबन किया हो अथवा विषकन्या का चुंबन किया हो। इसके सिवाय मुझे दूसरा कोई कारण नजर नहीं आता । यदि वे कोई विषाक्त वस्तु को चूमते तो उस वस्तु के खंड यहां होते । मुझे उनके पास से ऐसी कोई वस्तु प्राप्त नहीं हुई है। और जैसा चरनायक ने मुझे बताया, उन पूर्ववर्ती तीनों मौतों में भी ऐसी वस्तु प्राप्त नहीं हो पाई थी । दूसरी बात है, चारों मृत्यु के समय दो-दो अश्वों के पदचिह्न मिले हैं। इससे यह