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अलबेली आम्रपाली १६७
अनेक सिपाही खोज करने गए। उन्होंने देखा, वह निर्जीव शव और कोई नहीं, शीलभद्र का शरीर था ।
"ओह ! समझ में नहीं आ रहा है कि यह विचित्र मौत कहां से आती है । ऐसा भयंकर षड्यंत्र कौन चला रहा है ? यह तो अच्छा हुआ कि महाराज कल प्रातः ही यहां से चले गए, अन्यथा?" कहती कहती आम्रपाली विचारमग्न हो गई ।
" कुमार शीलभद्र !" इतना कहकर आम्रपाली पुनः शय्या पर लेट गई ।
नगरी के दक्षिण दिशा में नदी के तट के पास वाले उपवन में लोगों की भीड़-सी लग रही थी ।
जैसे-जैसे लोगों को समाचार मिलता गया वैसे-वैसे शीलभद्र के वयस्य और मित्र अपने-अपने कामकाज छोड़कर उपवन की ओर भागे जा रहे थे । उन्हें अपने प्रिय नेता के अंतिम दर्शन करने थे ।
सैकड़ों लिच्छवी युवक उपवन के बाहर खड़े-खड़े यह जानने के लिए आतुर हो रहे थे कि भीतर क्या हो रहा है ?
चम्पा नगरी के विषवैद्य गोपालस्वामी ने कुमार शीलभद्र के शव का पूरा परीक्षण कर लिया था । और उन्होंने एक स्वर्णपात्र में शीलभद्र के मुंह से निकलने वाले झाग ले लिये थे ।
परीक्षण पूरा हो जाने पर गोपालस्वामी खड़े हुए और बोले - " अब कुमारश्री के शव को अग्नि संस्कार के लिए ले जाया जा सकता है।"
सिंह सेनापति ने गोपालस्वामी से पूछा - " आपको क्या लगता है ?" "मुझे बहुत कुछ कहना है परन्तु यह सारी चर्चा मैं भवन पर करूंगा । इससे पूर्व मैं मरने वाले के मुंह से निकलने वाले फेन का रासायनिक परीक्षण कर लेना चाहता हूं | आप कुमारश्री के शव की व्यवस्था में जुटे रहें । मैं अपने स्थान पर जाता हूं।" कहकर भारत के सर्वश्रेष्ठ विष- निष्णात गोपालस्वामी अपने रथ की ओर चल पड़े ।
शीलभद्र के पिताश्री, भाई आदि बन्धुजन वहां आए थे। उन्होंने यहीं से श्मशान भूमि में जाने का निश्चय किया था ।
शव परीक्षण के पश्चात् जनता उपवन में गई और अपने प्रिय नेता के निर्जीव शरीर को देखकर फूट-फूट कर रोने लगी ।
सभी के मन में एक ही प्रश्न घूम रहा था कि ऐसे समर्थ व्यक्ति की मृत्यु कैसे हुई ?
गुप्तचर विभाग को कोई नया तथ्य प्राप्त नहीं हुआ । चरनायक ने केवल यह जाना कि कुमार शीलभद्र सप्तभूमि प्रासाद पर आक्रमण करवाने में मुखिया था । उसका एक मात्र उद्देश्य था कि बिंबिसार को जीवित पड़कना अथवा मार