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१८८ अलबेली आम्रपाली
___"हां, देवि ! आप और महाराज नैशभ्रमण के लिए गए हैं । वहां जल-विहार करेंगे, मृगया खेलेंगे, फिर भवन में लौटेंगे। यह बात मैंने कही थी।"
"उत्तम ! तू गणनायक से मिली थी ?" "हां, मैंने उनको भी यही बात कही।" माध्विका ने कहा। "अच्छा, भवन में कोई लिच्छवी है ?" "नहीं, किन्तु भवन के बाहर कुछ युवक इधर-उधर चौकसी कर रहे हैं।"
"अच्छा''महाराज यक्ष मन्दिर में रुके हैं। तुझे कुछ सामग्री लेकर जाना है। पश्चिम द्वार पर खड़े राघव से कहना कि वह उद्यान में चला जाए । वहां से महाराज बाहर-बाहर आगे चले जाएंगे।"
"जी।" कहकर माध्विका देवी के साथ-साथ गयी।
आम्रपाली ने सबसे पहले एक रथ तैयार करने की आज्ञा दी। फिर बिंबिसार की मंजूषा से रत्नहार निकालकर गले में पहना । उसमें हजार स्वर्ण मुद्राएं और अपनी स्मृति स्वरूप एक नीलम रखा । पाथेय, वस्त्र आदि दूसरी मंजूषा में रखे । इस प्रकार सारी आवश्यक सामग्री तैयार करवाकर माध्विका को उद्यान की ओर रवाना कर दिया।
चालीस-पचास लिच्छवी युवक भवन के सामने पहरा देते हुए इधर-उधर घूम रहे थे। भवन के पिछले भाग में मात्र चार-पांच युवक थे। ज्योंही माध्विका का रथ बाहर निकला उन युवकों के मन में संदेह हुआ और वे रथ के पीछे पड़ गए। __ रथ में बैठी हुई माध्विका ने देखा कि चार युवक रथ के पीछे-पीछे आ रहे हैं । परन्तु चारों के पास कोई वाहन नहीं था।
इसलिए माध्विका ने रथिक से रथ को तीव्र गति से उद्यान में ले जाने के लिए कहा। ___ शत्रु पकड़ में नहीं आया, यह जानकर लगभग सौ युवक नगर की दक्षिणी दिशा में गए।
और इधर'।
शीलभद्र एक भवन में बैठा-बैठा क्षण-क्षण के समाचार एकत्रित कर रहा था । सुखद समाचार न मिलने के कारण उसकी अकुलाहट बढ़ रही थी। वह इसी आशा में वहां बैठा था कि बिंबिसार की मृत्यु का समाचार अब मिले, तब मिले । किन्तु जब उसने यह सुना कि आम्रपाली और बिंबिसार दक्षिण दिशा में भ्रमण के लिए गए हैं, उसकी आशा पर तुषारापात हो गया। उसी ने सौ युवकों को दक्षिण दिशा में भेजा था।
अब वह इस समाचार की प्रतीक्षा कर रहा था कि दक्षिण दिशा में गया हुआ बिंबिसार लिच्छवी युवकों के शस्त्र से परधाम पहुंच गया होगा।