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१९२ अलबेली आम्रपाली
मात्र कुछ ही क्षणों में शीलभद्र का सारा शरीर अकथनीय खिंचाव का अनुभव करने लगा और शीलभद्र तत्काल भूमि पर गिर पड़ा।
वासना विलीन हो गई। आशा नष्ट हो गई। यौवन की उत्ताल तरंगें समाहित हो गईं। कादंबिनी दो क्षणों तक शीलभद्र के निर्जीव शरीर को देखती रही।
शीलभद्र के मुंह से फेन निकल रहे थे. 'आंखें भयानक हो गई थी. शरीर ठंडा पड़ चुका था। कादंबिनी ने चारों ओर देखा' 'कोई नजर नहीं आया... थोड़ी ही दूरी पर दो अश्व शांत खड़े थे।
गगन में चांद निर्विकार दृष्टि से धरती की ओर देख रहा था।
कादंबिनी तत्काल मुड़ी। उसने सोचा, शीलभद्र को उठाकर उसके अश्व पर रख दिया जाए किन्तु उसमें इतनी शक्ति नहीं थी। वह अपने अश्व के पास आई और उस पर पड़ी अपनी पगड़ी पुन: शिर पर रखी, उत्तरीय को ओढा और कुछ भी न हुआ हो, इस स्वस्थ मन के साथ वह अपने अश्व पर बैठ गई।
चतुर सुबुद्धि अश्व तत्काल वहां से मुड़ा। शीलभद्र का अश्व हिनहिनाने लगा। किन्तु उसको बंधन-मुक्त कौन करे ?
कादंबिनी ने नगरी में जाने की सु-व्यवस्था कर रखी थी। नगरी के मुख्य द्वार से जाने का उसने निश्चय किया था किन्तु सूर्योदय के बाद और अपनी दासियों के साथ।
नगरी के बाहर वाले यक्ष-मंदिर के पास प्रातःकाल कादंबिनी की दासियां उपस्थित हो जाने वाली थीं। __कादंबिनी जब यक्ष मंदिर में पहुंची तब उसकी दासियां एक रथ के साथ वहां पहुंच गई थीं।
कादंबिनी ने यक्ष-मंदिर में जाकर अपनी पाग दूर रखी और मानो वह यक्ष की पूजा करने के लिए ही आई हो, इस भावना के साथ वह वहां बैठ गई।
मुख्य दासी ने नैवेद्य का थाल लाकर यक्ष के सामने रख दिया।
यक्ष का पुजारी नगर में रहता था। वह भी आ गया। उसने कादंबिनी को आशीर्वाद दिया। कादंबिनी ने दस स्वर्णमुद्राएं यक्ष की पेटिका में डालीं।
सूर्योदय होते ही उसने रथ में बैठकर नगर में प्रवेश किया।
द्वारपाल ने देखा कि प्रातःकाल जो लोग यक्ष की पूजा करने गए थे वे लोग लौटकर आ रहे हैं।
कादंबिनी ने इस बात की बहुत ही सावचेती रखी थी कि किसी को किसी प्रकार का संशय न हो। वह भवन में आ पहुंची।