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अलबेली आम्रपाली १८१ आचार्य देवानन्द सत्तर वर्ष के थे । किन्तु शरीर स्वस्थ, सशक्त और सुन्दर था।
आम्रपाली ने अत्यन्त आदर के साथ आचार्य को आसन पर बिठाया। आचार्य ने पूछा-"पुत्रि ! कुशल तो हो न?"
"आपके आशीर्वाद से सब कुशल है।" कहकर आम्रपाली ने आचार्य का चरण-स्पर्श किया। बिंबिसार ने भी आचार्य का चरण-स्पर्श किया ।
बिंबिसार की ओर देखते हुए आचार्य ने आम्रपाली से पूछा--"भाग्यशाली का परिचय...?"
"मेरे स्वामी हैं 'मगध के युवराज श्रेणिक बिंबिसार..." आम्रपाली ने विनम्र स्वरों में कहा।
आम्रपाली और बिंबिसार ने आचार्य की पुष्पों से पूजा की दोनों ने पुष्पमाला भी आचार्य को पहनायी।
आचार्य ने पूछा- "बोल बेटी ! इस वृद्ध को क्यों याद किया?"
आम्रपाली ने कहा-"मेरे स्वामी को बाहर जाना है। प्रस्थान का शुभ मूहतं पाप निकालकर दें।"
"बस, इतना ही काम है ? तुझे कोई प्रश्न नहीं पूछना है ?" देवानन्दाचार्य ने कहा।
बिंबिसार बोले-"महात्मन् ! मेरी प्रिया सगर्भा है । एक वृद्ध नैमित्तिक ने कुछ संशयभरी बात कही थी किन्तु वृद्ध दायण कुछ और ही कह रहा है। यदि आप इस विषय में कुछ कहें तो मेरा चित्त प्रसन्न होगा।"
देवानन्दाचार्य दोनों की ओर देखकर बोले-"पुत्रि ! उत्तम समाचार । भगवान् नटेश्वर तेरी सारी कामनाएं पूर्ण करेंगे।"
फिर आचार्य ने गणित कर कुंडली बनाई और युवराज के प्रस्थान के विषय में भी सोच लिया।
एकाध घटिका तक मन-ही-मन विचार-विमर्श कर आचार्य ने कहा-"आज गुरुवार है। अगले सोमवार को अच्छा दिन है"प्रातःकाल प्रथम प्रहर की दूसरी घटिका के इक्कीस पल पूरे होते-होते भवन से बाहर निकलना है और पश्चिम दिशा की ओर जाना है। यह मुहूर्त सर्वोत्तम, कार्यसिद्धिदायक और सारी कामनाओं को पूर्ण करने वाला है।"
"महात्मन् ! आप कृपा कर देवी के विषय में कुछ कहें ।" बिंबिसार ने कहा।
आचार्य प्रश्नकुंडली की ओर देखते रहे । फिर आम्रपाली की ओर देखकर गम्भीर स्वरों में बोले-"पुत्रि! तुझे कन्यारत्न की प्राप्ति होगी यह निश्चित है, और वह कन्या अत्यन्त रूपवती, संस्कारी और स्वस्थ होगी। किन्तु उसे मातृवियोग सहना पड़ेगा' 'कन्या के जन्म के पश्चात् यदि तू पचहत्तरवें दिन