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अलबेली आम्रपाली १४५
आम्रपाली मौन रही । वह राग की ध्वनि से एक पल भी पृथग् रहना नहीं
चाहती थी ।
परिचारिका ने दो बार कहा, तीन बार कहा, पर
आम्रपाली फिर बोली - "मैंने कोई उत्तर नहीं दिया, क्या उसका कोई प्रयोजन नहीं हैं ?"
"देवि ! परन्तु चरनायक ।"
"अच्छा, मैं अभी आती हूं । तू उनका पानक आदि से सत्कार कर ।" परिचारिका ने आर्य सुनन्द के समक्ष अमृत रस का बसंत पानक से भरा प्याला प्रस्तुत किया ।
आर्य सुनन्द उसे धीरे-धीरे पीने लगे। वह पानक पूरा हो इतने में ही जिसके रूप-यौवन की माधुरी से समस्त दिशाएं प्रफुल्ल बन जाती थीं, वह वैशाली की जनपद कल्याणी आम्रपाली उस खण्ड में आई ।
आर्य सुनन्द ने खड़े होकर आम्रपाली का अभिवादन किया । आम्रपाली बोली - "आयुष्मन् ! प्रसन्न तो हैं न ?"
"देवि ! आपके दर्शन से किसका मन प्रसन्न नहीं होता ? आप कुशल तो हैं न?"
"हां, आरोग्य ठीक है । विशेष प्रयोजन से नृत्याभिनय बंद किया है ।" "आपका विवाह..!”
आम्रपाली बीच में ही बोल पड़ी - "विवाह नहीं, मित्र ! जनपद-कल्याणी किसी की पत्नी नहीं बनती ।"
"ओह ! यह तो मैं भूल ही गया । यथार्थ में आचार्य जयकीर्ति बहुत सौभाग्यशाली हैं देवताओं के लिए भी दुर्लभ आप जैसी ।"
आम्रपाली ने हंसते हुए कहा - "नहीं आर्य ! जीवन में प्यार कब जन्मता है, कब उभरता है और कब किसके प्रति बरस पाता है, उसकी कल्पना नहीं की जा सकती । आपके आगमन का प्रयोजन ?"
"मैंने आचार्य जयकीर्ति के वीणावादन के विषय में सुना है कि वे जब वीणा बजाते हैं तब राग स्वयं सजीव बन जाती है। मैं यह चमत्कार देखना चाहता हूं ।” सुनन्द ने कहा ।
"आचार्य एक मस्त और घुनी वीणावादक हैं । वीणा का संपूर्ण शास्त्र उनकी लियों में समाया हुआ है । किन्तु वे मेरे सिवाय और किसी के समक्ष वीणा
वादन नहीं करते । " आम्रपाली ने मधुर हास्य को बिखेरते हुए कहा ।
इसीलिए तो आपके सामने प्रार्थना करने आया हूं ।"
" अच्छा तो मैं कभी आपको आमंत्रित करूगी ।'
"मैं धन्य हुआ ।" कहकर चरनायक वहां से प्रस्थित हो गया ।
"