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१७२ अलबेली आम्रपाली
ऐसी स्थिति में जनता कब क्या कर डाले, यह कहा नहीं जा सकता।" __गणनायक बोले-"कुमारश्री ! आपका कथन प्रासंगिक और समयोचित है। जनपदकल्याणी भी बहुत बुद्धिमती है। उसी ने इस प्रश्न का उचित समाधान खोज निकाला है..."
"समाधान क्या है ?" शीलभद्र ने पूछा।
"वैशाली के कल्याण के लिए तथा सही गुनहगार को खोज निकालने के लिए जनपदकल्याणी आम्रपाली अपने प्रियतम का त्याग करने के लिए तैयार हई है।" सिंहनायक ने बलपूर्वक यह बात कही। __ सभी सदस्यों के मन पर इसका असर हुआ। सभी बोल उठे-"जनपदकल्याणी वास्तव में ही जनपदकल्याणी है 'उसका निर्णय सर्वोत्तम है।"
सिंहनायक बोले-"मैंने आम्रपाली को यह संदेश भी दिया है कि एकाध सप्ताह में ही बिंबिसार को वैशाली की सीमा से बाहर भेज दिया जाए।"
सभी ने सिंहसेनापति के निर्णय का समर्थन किया। शीलभद्र ने भी कोई विरोध नहीं किया। किन्तु उसके मन में ईर्ष्या की एक चिनगारी जल रही थी, वह धधक उठी। उसके मन में आम्रपाली को अपनी बनाने का एक मनोरथ पल रहा था। और यह मनोरथ आखेट के षड्यंत्र में टूट गया था। उसके बाद वह और प्रयत्न करे, उससे पूर्व ही आम्रपाली आचार्य जयकीर्ति के वेश में आए हुए बिंबिसार की अंकशायिनी बन चुकी थी।
शीलभद्र को यह गहरी चोट लगी, फिर भी वह इस विषय में कुछ कर सकने में असमर्थ था। इसलिए वह मन मारकर बैठ गया था।
जब बिंबिसार का रहस्य खुला और यह आशंका हुई कि वह षड्यंत्र से जुड़ा हुआ है तब शीलभद्र को प्रतिशोध लेने का मौका मिल गया। उसी ने अपने साथियों द्वारा बिंबिसार के विरुद्ध विरोध का बवंडर पैदा किया था।
उसे यह आशा नहीं थी कि यह प्रश्न इतनी सहजता से सुलझ जाएगा । वह चाहता था, छोटा-सा युद्ध और बिंबिसार का वध । किन्तु सिंह सेनापति के प्रयत्न से यह विवाद ऐसे ही समाहित हो गया । ___ आम्रपाली से सम्बन्धित बिंबिसार का प्रश्न समाहित हो गया । सभी सेनापति के भवन से प्रसन्न चित्त होकर बाहर आए। शीलभद्र भी वहां से विदा हुआ। परन्तु उसके मन में हर्ष नहीं था। बिबिसार ऐसे ही वहां से निकल जाए, यह भी उसे इष्ट नहीं था। यह भी सच था कि जब तक विबिसार जीवित रहेगा, तब तक आम्रपाली को अपनी नहीं बनाया जा सकता । इसलिए यह येन-केन-प्रकारेण बिबिसार को नष्ट करना चाहता था।
शीलभद्र वहां से रवाना होकर अपने भवन की ओर न जाकर एक मित्र के घर पहुंचा। अपने मित्र को अचानक आया देख, मित्र असमंजस में पड़ गया। वह