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अलबेली आम्रपाली १७३ उठा और मैरेय से स्वागत करते हुए बोला-"मित्र ! कैसे आना हुआ ?"
"बंधुवर ! गणनायक अपने कार्य में सफल हो गए."किन्तु अपना कार्य अधूरा ही रह जाएगा।" शीलभद्र ने कहा ।
"क्या हुआ?" "एकाध सप्ताह में आम्रपाली अपने प्रियतम को विदा कर देगी।" "सदा के लिए ?"
"ऐसा कोई खुलासा नहीं हुआ है । किन्तु दो-चार महीनों के लिए तो होगा ही।"
मित्र बोला- "कुमारश्री ! बिंबिसार सदा-सदा के लिए दूर हो जाना चाहिए। वह पुनः वैशाली में आए ही नहीं, ऐसा कोई उपाय करना चाहिए।"
"ठीक है किन्तु यह कार्य जनता ही कर सकती है और कोई नहीं कर सकता।" शीलभद्र बोला।
मित्र सोच में पड़ गया.''दो क्षण मौन रहकर वह बोला-"हूं.''तो कल रात्रि में मैं अपने स्थान पर सबको बुला लूंगा' 'आप भी आएं. 'हम सब मिलकर बिंबिसार को समझ लेंगे।"
शीलभद्र विचारमग्न हो गया। उसे कल रात कादंबिनी से मिलना था। कोई बात नहीं. पहले इस समस्या का समाधान करके फिर कादंबिनी से मिल लूंगा''यह सोचकर बोला-"ठीक है, मैं कल रात्रि के प्रथम प्रहर के आसपास आ जाऊंगा। अन्यान्य सभी साथियों को एकत्रित करने की जिम्मेवारी तुम्हारी
होगी।"
"आप निश्चिन्त रहें।" मित्र ने हंसकर कहा । और मैरेय का पान कर शीलभद्र अपने भवन की ओर चल पड़ा।
रात भर वह करवटें बदलता रहा। कादंबिनी उसके मानस-पटल से ओझल नहीं हो रही थी। और बिंबिसार को कैसे नष्ट किया जाए, यह योजना भी उसके समस्त ज्ञानतंतुओं को झंकृत कर रही थी। इन सब विचारों की उधेड़बुन में शीलभद्र की सारी रात बीती। जब वह प्रातःकाल शय्या से उठा, तब उसने दो विचार निश्चित किए थे एक विचार तो यह था कि मध्याह्न के पश्चात् कादंबिनी से मिलने जाना है और दूसरा विचार था बिंबिसार को नष्ट करने के लिए आकस्मिक ढंग से सप्तभूमि प्रासाद पर सशस्त्र आक्रमण किया जाए और बिंबिसार को सदा-सदा के लिए सुला दिया जाए। ___ इस प्रकार निर्णय होने पर विचारों की उधेड़बुन समाप्त हो गई। विचारों की उथल-पुथल तब ही मिटती है जब वे निर्णयात्मक बनते हैं।
निश्चित समय पर शीलभद्र कादंबिनी के भवन पर पहुंचा। परिचारिका ने उसका यथायोग्य स्वागत किया और एक विशिष्ट खंड में बिठाकर ग्रीष्मपानक