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१६६ अलबेली आम्रपाली
उनके नारों में रोष था। चारों ओर उनकी आवाज स्पष्ट सुनाई दे रही
थी ।
सिंह सेनापति यह देखकर विस्मय से भर गए। उन्होंने सोचा, जो बात अभी मर्यादा में थी, वह इस प्रकार प्रसारित कैसे हो गई ! उन्होंने युवकों को समझाया और उनको आश्वासन दिया कि सप्तभूमि प्रासाद में यदि वैशाली का शत्रु छुपा होगा और वैशाली के अमंगल का षड्यंत्र करता होगा तो आप निश्चित मानें कि घटिका के छठे भाग में उसका मस्तक वैशाली की वीरभूमि पर लुढ़क जाएगा । मैं इस विषय में पूरी जांच करने का वादा करता हूं।"
भीड़ तितर-बितर हो गई ।
सिंह सेनापति का रथ सप्तभूमि प्रासाद में प्रविष्ट हुआ । बिबिसार और आम्रपाली ने भावभरा स्वागत किया ।
अभी कुछ ही समय पूर्व वैशाली के युवकों ने सप्तभूमि प्रासाद के बाहर जो धूम मचाई थी, और जनपदकल्याणी के गौरव पर जो धूल डाली थी, उससे आम्रपाली रोष से लबालब भर गई ।
अंतर का रोष नयन और वदन से बाहर प्रकट होता ही है ।
आम्रपाली का सदाबहार आनन भी आज रोष के कारण लाल हो रहा था और आंखों में मानो बिजली कड़क रही थी ।
गणनायक ने कहा - 'पुत्रि ! बापू को क्षमा करना । मुझे तुम्हारे आनंद के बीच आना पड़ रहा है। पर क्या करूं? मुझे अपना कर्तव्य निभाना होता है ।" आम्रपाली बोली - " बापू ! आप स्वयं आ गए, यह अच्छा ही हुआ, अन्यथा मैं आती।"
"क्यों ?"
" जनपदकल्याणी के सड़े-गले पद गौरव को फेंक देने...।"
गणनायक ये शब्द सुनकर अवाक् रह गए। दो क्षण मौन रहकर बोले"क्यों बेटी ? तेरा कथन मुझे..।"
..
"गणतंत्र की नियमावली तो आप जानते ही हैं जनपदकल्याणी का अपमान कोई छोटी बात नहीं है कोई भी वंशालिक जनपदकल्याणी के गौरव पर धूल नहीं डाल सकता ।"
""हुआ क्या है ?"
"आपने स्वयं अभी-अभी देखा है । वैशाली के युवकों ने यहां आकर क्याक्या नहीं किया ? वे ऐसा क्यों कर रहे थे ? मेरा गुनाह क्या था ? मुझे अधिकार प्राप्त है कि मैं अपने जीवन को स्वतंत्र रूप से जीऊं, तो फिर उसके बीच कोई क्यों बाधक बनता है ?... फिर भी वैशालिकों ने
?
"पूज्यश्री ! मैं आपसे पूछना चाहती हूं जिस दिन वैशाली के युवकों की