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१६२ अलबेली आम्रपाली
आया । यदि बिंबिसार अपना असली परिचय दे देंगे तो "वह सिहर उठी। वह यही चाहती थी कि अधूरी बात का सिलसिला चले ही नहीं।
सिंह सेनापति ने बिंबिसार से बात करते हुए कहा-"आचार्य ! हमारे वैशाली गणराज्य के चार स्तम्भ ढह पड़े । उनकी मृत्यु ने एक समस्या पैदा कर दी है। उन सबकी मृत्यु विष से हुई है। परन्तु अभी तक उसका पूरा रहस्योद्घाटन नहीं हो पाया है।"
विबिसार बोला- "इस विषय की पूरी जानकारी के लिए आप किसी विष वैद्य को बुलाएं । चम्पा नगरी में एक निष्णात विष-वैद्य रहते हैं...।"
"हां, गोपाल स्वामी नाम के एक प्रसिद्ध विष-वैद्य हैं । मैंने उन्हें बुला भेजा
"अब आप अपनी अधुरी बात आगे बढ़ाएं।" गणनायक ने कहा।
बिंबिसार बोला-"उस दिन आपने मेरा परिचय पाना चाहा और आपने यह कहा था कि मैं मालवीय नहीं हैं। आपने ठीक कहा। आपने कुछ दिन पूर्व सुना होगा कि मगधेश्वर ने अपने एक पुत्र को राजाज्ञा की रक्षा के लिए निर्वासित किया था।"
"हां, मैंने सुना था और साथ-साथ यह भी सुना था कि उन्होंने अपने प्रिय पुत्र श्रेणिक को निर्वासित किया है।"
"पूज्यश्री ! मैं ही वह बदनसीब श्रेणिक महाबिंब वीणा बजाता हूं। इसलिए मेरा अपर नाम है-बिबिसार ।" श्रेणिक ने कहा। ___"ओह ! आप हैं मगध के युवराज श्रेणिक बिंबिसार ।" आश्चर्य भरी दृष्टि से गणनायक ने उसे देखा और आसन से उठ खड़े हुए।
बिंबिसार भी आसन से उठा और उसने गणनायक के चरणों का स्पर्श किया तब गणनायक ने उसके सिर पर हाथ रख कर आम्रपाली से कहा"पुत्रि ! तू भाग्यवती है।"
सिंह सेनापति परिचय प्राप्त कर वहां से अपने घर की ओर आ गए। उनका मन विचारों से आन्दोलित हो उठा।
३५. वैशाली में हलचल गणनायक सिंह सेनापति ने अष्टकुल के प्रतिनिधियों और विशिष्ट राजपुरुषों के समक्ष आचार्य जयकीर्ति के छद्मवेश का परिचय देते हुए कहा-"वे दिखने में निर्दोष और विनयी लगते हैं। उनसे बातचीत करने पर यह प्रतीत होता है कि उन्हें कामकाज के साथ कुछ भी लेना-देना नहीं है। किन्तु अभी-अभी वैशाली में जो मृत्यु-लीला हुई है, उसे देखते हुए कई शंकाएं उभर आती हैं।"
कुमार शीलभद्र ने कहा-"चार पुरुष सदा निर्दोष-से प्रतीत होते हैं । यह