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१५४ अलबेली आम्रपाली
"उसने कहा-मैं तुझे दस दिन का समय देता है। इस अवधि में तू सोचसमझकर अपना निर्णय ले । ग्यारहवें दिन मैं तेरे साथ विवाह कर लूंगा।"
इतना कह वह कन्या रोने लगी। वह बोली-"वह यहां प्रतिदिन निश्चित समय पर आता है और मेरे सामने अपना संकल्प दोहराता है और कुछ क्षणों तक वह ध्यान कर चला जाता है । आज दस दिन पूरे हो रहे हैं । कल वह मेरे साथ बलात् विवाह करेगा । मैं चिंतित हूं । प्रतिदिन नमस्कार महामन्त्र का जाप करती हूं और इस दुष्ट के चंगुल से मुक्त होने की भावना करती हूं।"
बिंबिसार बोला-"कन्ये ! तुम अभय बनो । क्या तुम उसके कुछ रहस्य को भी जानती हो?" ____ "नहीं, मैं उस दुष्ट से बात करना भी नहीं चाहती। जब वह मेरे समक्ष आता है तब मैं आंखें बन्द कर ध्यानस्थ हो जाती हूं।"
"सुभगे ! आज एक काम करना । जब वह आए तब तुम मुसकराकर कहना, 'वीरवर ! कल मैं आपकी अौगिनी बन जाऊंगी। आप पराक्रमी हैं, वीर हैं। पर आप तो पूरा समय बाहर ही बिताते हैं । पीछे से कोई दूसरा राक्षस मुझे उत्पीड़ित करेगा तो'.? मुझे भय है कि वह तुम्हें मारकर मुझे उठा ले जाएगा तब मेरी क्या गति होगी?'.. आगे भी तुम बात ही बात में यह जानने का प्रयत्न करना कि उसकी मौत कैसे हो सकती है ? वह प्रेम में अंधा बना हुआ, तुम्हें सब कुछ बता देगा, फिर मैं उसको यमलोक पहुंचा दूंगा।" ।
इतने में ही अट्टहास सुनाई दिया। कन्या बोली- "दुष्ट आ रहा है। आप शीघ्रता करें, कहीं छुप जाएं।"
बिबिसार के पास अदृश्यकारिणी गुटिका थी। उसने गुटिका को मुह में लिया और अदृश्य हो गया।
राक्षस ने आते ही कहा-"कहां है वह दुष्ट ! मुझे मनुष्य की गंध आ रही
कन्या बोली- "कैसी बातें करते हैं । आपके रहते यहां मनुष्य ! मनुष्य तो क्या, पक्षी भी नहीं आ सकता । आप यहां बैठे। कल मेरे साथ आपका विवाह होगा । मुझे आज प्रसन्नता है कि मैं इस बन्दीखाने से छूटकर आपकी रानी बनूंगी। पर यदि कोई दूसरा राक्षस..."
बीच में ही वह बोल उठा-"कौन होता है दूसरा राक्षस ! मेरी शक्ति अपार है । मुझे कोई जीत नहीं सकता। मुझे कोई मार नहीं सकता।" ___ "परन्तु यहां कोई अमर तो नहीं रहता । मरना सबको पड़ता है ।" कन्या ने कहा।
"भोली हो तुम । मेरे पर किसी दूसरे के शस्त्र का असर नहीं होता। सारे शस्त्र बेकार हैं । मेरा खड्ग ही मेरी मौत कर सकता है । मैं इसे कभी अपने से