________________
१३२ अलबेली आम्रपाली
यह निश्चित नहीं था । उसने भवन के भीतर जाने का तीन बार प्रयत्न भी किया, परन्तु भवन के रक्षकों ने विनयपूर्वक उसे इनकार कर दिया था ।
श्रीमल्ल ने सोचा, इतना समय बीत गया है, इससे लगता है कि युवराज की भावना पूरी हुई है। इतने में ही भवन का दरवाजा खुला और उसने देखा कि एक अश्वारोही तेजगति से नगर की ओर दौड़ा आ रहा है।
कुछ समय बीता ।
रात्रि के दूसरे प्रहर की अन्तिम घटिका पूरी हो रही थी। इतने में ही एक कादंबिनी के भवन के पास आकर रुका। उसमें से महामन्त्री और चरनायक नीचे उतरे ।
भवन की मुख्य परिचारिका ने उन्हें भीतर प्रवेश कराया और एक विशेष खंड में बैठने का निवेदन किया ।
इतने में ही कादंबिनी वहां आई। महामंत्री ने पूछा - "बेटी ! क्या हुआ ? वह अभागा कौन था ?"
काबिनी ने सारी बात बताई। चरनायक ने कुछ पूछताछ की। फिर वे सब शव के पास आए । शव सफेद चादर से ढका हुआ था । चरनायक ने मुंह पर से चादर हटाई और वह चेहरा देखकर अवाक् रह गया। वह बोला - "" - " पूज्य ! गजब हो गया..."
"क्या ?"
"आपने नहीं पहचाना? ये तो कुमार दुर्दम हैं ।"
" दुर्दमकुमार ? " महामन्त्री ने फटे स्वरों से कहा । उन्होंने झुककर देखा और बोले - " गम्भीर प्रसंग उपस्थित हो गया है। यह बात जाहिर न हो । इसका जाहिर होना राज्य के लिए हितकर नहीं है। इस शव को चुपचाप राजभवन पहुंचा दो और जो इसका साथी बाहर खड़ा है, उसे गिरफ्तार कर लो ।"
कुछ सोचकर चरनायक बोला- “दादा ! आप जो कहते हैं वह उचित
है।"
महामन्त्री बोला - " दुर्दमकुमार की यह मौत अस्वाभाविक नहीं है । वे प्रारम्भ से ही रूप और यौवन के पीछे पागल थे । उन्हें इससे कभी नहीं रोका जा सका । लगता है वे कादंबिनी के रूप की प्रशंसा सुनकर यहां आए होंगे और अपना विवेक खोकर कादंबिनी का आलिंगन किया होगा | कादंबिनी का रक्षक यक्ष इसे कैसे सहन कर पाता ? उसने कुमार के प्राण खींच लिये, लगता है ।" चरनायक बोला- "यह ठीक है । परन्तु महादेवी जब यह दुःखद समाचार सुनेंगी तब। "