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अलबेली आम्रपाली १३१
कादंबिनी बोली-"हार अत्यन्त सुन्दर है ।"
"हार नहीं, तुम अति सुन्दर हो।" कहते हुए दुर्दम ने कादंबिनी को बाहुपाश में जकड़ लिया 'कादंबिनी का चेहरा लज्जारक्त हो गया।
दुर्दम बोला-"प्रिये ! जब तुम जानोगी कि मैं कौन हूं तब तुम्हारा हर्ष हजार गुना बढ़ जाएगा।"
कादंबिनी कुछ कहना चाहती थी, पर उसके बोलने से पूर्व ही उसके गुलाबी अधरों पर मद्यपायी दुर्दम के अधर टिक चुके थे।
चुम्बन अत्यन्त दीर्घ हो गया।
दुर्दम के नयनों में अंधियारी छाने लगी। दुर्दम का बाहुपाश धीरे-धीरे ढीला होने लगा। कादंबिनी के अधरदंश का प्रभाव हो चुका था। दुर्दम कुछ कहना चाहता था, पर बोल नहीं सका''उसके सारे अंग-प्रत्यंग ढीले हो गए... कादंबिनी ने अपने दोनों हाथ ढीले किए"मुख अलग किया और दुर्दम तत्काल धरती पर गिर पड़ा।
दुर्दम की ओर एक करुणदृष्टि फेंककर कादंबिनी द्वार के पास गयी और बन्द द्वार को धीरे से खोला।
वह पुनः दुर्दम के पास आयी। उसने देखा कि दुर्दम अन्तिम श्वास ले चुका है। देह नीला हो गया है । आंखें खुली हैं, जीभ बाहर निकल गयी है और उससे नीले रंग की लार टपक रही है।
कादंबिनी ने तत्काल एक दासी को बुलाकर कहा-"तत्काल महामन्त्री को यह समाचार दो कि मालव का एक युवक मुझसे मिलने आया था। वह अपना भान और विवेक खोकर मेरा आलिंगन कर बैठा। मेरे रक्षक यक्ष ने उसके प्राण खींच लिये।"
दासी ने दुर्दम की निर्जीव काया की ओर देखकर कहा-"मर गया ? देवि ! इसका परिचय...?"
"मालव का राजपूत है। इसका कोई परिचय नहीं है।" "आपको कुछ...? "मैं सुरक्षित हूं।" तू सबसे पहले एक दूत को भेज ।
फिर कादंबिनी अन्यान्य परिचारिकाओं की ओर देखकर कहा-"इस लाश को कोई न छुए" । इतना कहकर वह चली गयी।
२६. आशा का बीप बुझ गया दुर्दम का साथी श्रीमल्ल युवराज की प्रतीक्षा में बाहर खड़ा था। वह एक वृक्ष के नीचे विश्राम कर रहा था, क्योंकि युवराज कादंबिनी के खंड से कब निकलेंगे,