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अलबेली आम्रपाली १३५
महामन्त्री ने पूरी बात सुनाई और अन्त में कहा - "महादेवि ! महाराज
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कुमार ने कादंबिनी को हार पहनाया।'
"फिर ?” कंपित स्वरों में रानी ने पूछा ।
"महादेवि ! विष को पचाना सरल है, पर यौवन की मादकता को पचा पाना सरल नहीं होता। महाराज कुमार ने अचानक कादंबिनी को अपने बाहुपाश में जकड़ लिया | कादंबिनी ने उस बाहुपाश से छूटने का बहुत प्रयत्न किया, पर महाराजकुमार ने अपनी पकड़ ढीली नहीं की और एक चुंबन ले लिया। तत्काल महाराजकुमार धरती पर लुढ़क गये कादंबिनी की सतत रक्षा करने वाले यक्ष ने मगध के भावी सम्राट् के प्राण ले लिये।”
"
"ओह ! मेरा दुर्दम । " कहती हुई रानी आसन पर मूच्छित हो गई । राजा को भी अत्यन्त दुःख हुआ ।
महामन्त्री ने राजा को एक ओर ले जाकर कहा- "महाराज ! जो होना था हो गया किन्तु महाराजकुमार की मृत्यु का रहस्य गुप्त ही रखना है । आप महादेवी को भी इसकी सूचना दे दें। मैं अन्यान्य तैयारी करता हूं।"
महादेवी की मूर्च्छा दूर हुई। वह सुबक सुबककर रोने लगी। महाराज ने सान्त्वना दी | महारानी का हृदय फट रहा था। उसका एकाकी आशा-दीप सदासदा के लिए बुझ गया । जिसके जीवन को लेकर उसने आशा के इतने ताने-बाने बुने थे, वह लाड़ला राजकुमार असमय में मौत का शिकार हो गया ।
महाराजा ने नाना प्रकार से महादेवी को सान्त्वना दी। रानी कुछ आश्वस्त हुई। महाराजा ने उसकी पीठ पर हाथ रखते हुए कहा - "देवि ! कादंबिनी के स्पर्श से दुर्दम की मृत्यु हुई है। पर यह बात गुप्त रखनी है, क्योंकि इससे हमारी निन्दा होगी। हमारा उपहास होगा और गुप्त शस्त्र की बात भी उघड़ जाएगी । इससे राज्य का बड़ा नुकसान होगा, इसलिए महामन्त्री ने दुर्दम की मृत्यु सर्पदंश से हुई है, ऐसी घोषणा करवाई है। तुम भी इस विषय में सावचेत रहना । कभीकभी हमारी ममता विपत्ति खड़ी कर देती है । "
रानी कुछ क्षण मौन रही । फिर बोली - " आपने जो कहा, वह उचित है । " रानी के चित्त को प्रसन्न रखने के लिए राजभवन में तीन मास का शोक और नगर में बीस दिन का शोक रखने की आज्ञा प्रसारित की गयी ।
काल बीतता गया । समय रुकता नहीं । संसार में काल ही एक ऐसा तत्त्व है जो निरन्तर चलता रहता है ।
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एक दिन महादेवी ने प्रिय सखी श्यामांगी को बुला भेजा । उसे कहा"सखी ! मेरा तो सारा घर ही लुट गया । मेरे सारे बेड़े डूब गए ।"
"महादेवी ! आपकी इस गहरी विपत्ति को मैं टूटे हृदय से देखती हूं ।”