________________
अलबेली आम्रपाली ६५
शंबुक बोला-"जयकीति ! क्या तूने कृष्णयुग के इतिहास की बातें सुनी
"हां, महाराज ! 'जय' नामक काव्य में मैंने उसे पढ़ा है।"
"उस महाकाव्य में महान् इतिहास है । आज उस युग को साढ़े तीन हजार वर्ष हो चुके हैं। किन्तु मैं उसे कल का ही इतिहास मानता हूं। आज हम जो महान् खजाना देखने जा रहे हैं, उसकी जानकारी मैं तुझे दे दूं।"
"महाराज ! सुनकर मुझे अत्यन्त हर्ष होगा।"
"कुरुक्षेत्र में कौरव और पांडव के बीच एक महान् युद्ध हुआ था। वह अठारह दिनों तक चला। उस संग्राम में लाखों व्यक्ति मारे गए। उसमें मेरे पूर्वज राक्षसराज अलंबुष भी परम पराक्रम से लड़कर वीरगति को प्राप्त हुए थे और कुछेक हमारे व्यक्ति रणक्षेत्र से भाग गए थे। उस भीषण संग्राम में अनेक राजे और महारथी मौत के अतिथि बन गए थे। हमारे पूर्वज राक्षसराज के कुछ व्यक्ति रात्रिकाल में रणभूमि में जाते और मृत्यु प्राप्त योद्धाओं के दिव्य रत्नालंकार ले आते । ऐसे अनगिन अलंकार इस वन में एकत्रित हो गए थे । भविष्य में यह संपत्ति कार्यकारी होगी, इसी आशा से हमारे पूर्वजों ने उस सारी संपत्ति को एक गुप्त स्थान पर सुरक्षित रख दिया। वह विपुल और दिव्य खजाना आज भी वैसा ही है। मैं तुझे वह आज दिखाऊंगा। इस खजाने को एकत्रित किए साढ़े तीन हजार वर्ष बीत चुके हैं। हमारी अनेक पीढ़ियां बीत गईं। इस खजाने की कुछ संपत्ति काम में आ चुकी है, फिर भी जो कुछ बचा है वह भी कुबेर के भंडार की स्मृति कराने वाला है । हमारे पूर्वज राक्षसराज अलंबुष का मुकुट आज भी हमारे पास सुरक्षित है । वह इस खजाने में है । उस मुकुट को देखकर यह अनुमान किया जा सकता है कि उस युग के वीर पुरुष कैसे होते थे ? दुस्सासन के गले की मुक्तामाला के एक-एक मोती को देखने से यह प्रतीत होता है कि वे बहुमूल्य मोती हैं । उनका मूल्य एक साम्राज्य से भी अधिक है।"
बिबिसार यह सुनकर आश्चर्य से भर रहा था। शंबुक बोला-"मित्र ! मैं तुझे अनेक वस्तुएं दिखाऊंगा। उस खजाने में महाराज जयद्रथ की तलवार, दुर्योधन की गदा, घटोत्कच की स्वर्णमय शक्ति-शस्त्र, ये सब आज भी सुरक्षित
___ उसके बाद शंबुक ने धनुष्य और तूणीर को संभाला और हाथ में भाला ले लिया।
एक सैनिक आगे बढ़ा और जयकीर्ति की आंखों पर कौशेय की एक पट्री बांध दी।
शंबुक बोला-"मित्र ! अन्यथा मत समझना। कुछ धर्य रखना होगा।"