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अलबेली आम्रपाली ८३ ''कौन था ?" "मालवीय था।"
"अशक्य ! मालवा के नवयुवकों में ऐसी दीर्घदृष्टि हो ही नहीं सकती। सम्भव है, वह या तो मागध होगा या कालिंग। आश्चर्य की बात है कि कोई लिच्छवी युवक आगे नहीं आया।"
__आज आकाश मेघों से आच्छन्न था। आम्रपाली के हृदय में भी अनेक मेघ उमड़-घुमड़ रहे थे । किसी लिच्छवी युवक ने हाथी को परास्त करने का साहस नहीं किया, यह बात उसके प्राणों में तीर की भांति चुभ रही थी। उसने सोचा, पूर्व भारत में वीर शिरोमणि कहे जाने वाले लिच्छवियों के रक्त में ऐसा परिवर्तन कब-कैसे हुआ ?
आम्रपाली इन विचारों में उन्मज्जन-निमज्जन कर रही थी। इतने में ही माध्विका ने खण्ड में प्रवेश कर कहा-"देवि ! आनर्त की पोशाक तैयार है। पगड़ी भी तैयार है । आप एक बार इनको पहनकर देखें।"
कुछ समय पश्चात् आम्रपाली ने मात्रिका की सहायता से आनर्त देश के किसी नवजवान की वेशभूषा धारण की। लाल किनारे की ढीली धोती, अंगरखा, उसके ऊपर पतले लोहे का कवच और मस्तक पर पाग। फिर उसने आदमकद शीशे में अपनी प्रतिकृति देखी। माविका ने कहा-''देवि ! इस पोशाक से आपका रूप-रंग खिल उठा है। आपको कोई पहचान ही नहीं पाएगा।"
"फिर भी नारी की आंख कभी छिपती नहीं। किन्तु कल जब मैं मृगया के लिए जाऊंगी, तब यह वेशभूषा बहुत उपयोगी होगी।"
"देवी क्षमा करें तो एक बात कहूं।" "बोल ।"
"आपने आर्य शीलभद्र को वचन दिया है, वह मैं जानती हूं। किन्तु उसके साथ आप अकेली जाएं तो...।" _ 'क्या कोई भय है ?"
"हां, देवि ! पुरुष जाति का मन कब विकल हो जाए, कहा नहीं जा सकता।" माध्विका ने कहा ।
"माध्विका ! मुझे अपनी शक्ति पर पूरा भरोसा है। जो लिच्छवी युवक एक हाथी को वश में नहीं कर सके, वे एक सुन्दरी का कुछ भी नहीं बिगाड़ सकेंगे । शीलभद्र ने यह आयोजन मेरी प्रीति प्राप्त करने के लिए किया है। पर वह बेचारा नहीं जानता कि नारी की प्रीति प्राप्त करना स्वर्ग-प्राप्ति से भी कठिन है।"
माध्विका मौन रही। आम्रपाली पुरुषवेश उतारने लगी।