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अलबेली आम्रपाली १३ बोली-"तो फिर वराह का नाश किसने किया? हमारे साथ और कोई पुरुष तो था ही नहीं।"
"मैंने कहा कि आपके भाग्य ने आपकी रक्षा की है।" बिंबिसार ने कहा । "अच्छा, मैं समझ गयी । आप ही मेरे भाग्य बनकर आये । परन्तु...।" "परन्तु क्या ?" "यह स्थान ?"
"देवि ! मैं इस स्थान से अपरिचित हूं। मैं इस प्रस्तरगृह में रहता हूं। इसे ही लोग भूतियागृह कहते हैं।"
"भूतियागृह !" "हां, किन्तु मुझे यहां कोई भूत-बूत नहीं मिला।" "आप यहां अकेले ही रहते हैं ?" "नहीं, मेरे दो साथी और हैं।" बिंबिसार बोला।
आम्रपाली ने चारों ओर देखा । फिर वह खड़ी हुई और बोली-"क्या मेरा अश्व वराह का भोग बन गया?"
"नहीं आपका अश्व सुरक्षित है।" "सुरक्षित है ?"
"हां ! आप मूच्छित हो गयी थीं । आपके अश्व पर आपको चढ़ाकर ही मैं यहां लाया हूं।"
आम्रपाली ने पूछा-"आपका शुभ नाम ?" "मेरा नाम शुभ है या अशुभ, मैं नहीं जानता । मुझे लोग जयकीर्ति कहते
"जयकीति ! यह नाम तो परिचित-सा लगता है। क्या आप मेले में गये थे? क्या आपने एक विकराल हाथी को।"
"हां, देवि। मैं वही जयकीर्ति हूं।" "भाग्यवान् ! क्या मैं एक प्रश्न पूछ सकती हूं?" "हां-हां, संकोच न करें।"
"क्षमा करें। आपने मेरे साथी को मेरा प्रेमी कैसे मान लिया ?" आम्रपाली ने पूछा। ___ "देवि ! मैंने उसको भागते हुए देखा था। जब मैंने आपको मूच्छित अवस्था में उठाया तब आपके पुरुषवेश का रहस्य खुल गया।"
आम्रपाली ने हंसते हुए कहा-"प्रेमी होता तो क्या कभी भागता? अरे ! आपने मेरा परिचय तो पूछा ही नहीं।" ."आपका परिचय तो मुझे मिल गया।" बिंबिसार ने सहज स्वर में कहा । "मेरा परिचय कैसे प्राप्त हुआ ?" आम्रपाली ने पूछा।