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१०८ अलबेली आम्रपाली
"इसीलिए यौवन अवस्था में अत्यन्य जागरूक रहना होता है ।" गणनायक ने कहा ।
आम्रपाली मौन रही । उसका चित्त सप्तभूमि प्रासाद के छठी मंजिल पर बैठे प्रियतम से मिलने के लिए आकुल-व्याकुल हो रहा था ।
गणनायक के पूछने पर आम्रपाली ने रहस्यमय ढंग से अपने बचाव की बात बतायी और उनमें यह विश्वास पैदा कर दिया कि वीणावादक जयकीर्ति ने प्राणरक्षा की है।
छठे मंजिल पर बिंविसार स्नान आदि से निवृत्त हो आम्रपाली की प्रतीक्षा में बैठा था । प्रतीक्षा का काल दीर्घ लगता है । बिंबिसार के लिए एक-एक क्षण भारी हो गया । उसका हृदय प्रफुल्लित था । वह मन-ही-मन कुछ सोच रहा था ।
इस प्रकार वह अनेक विचारों के बीच अटक गया था। इतने में ही आम्रपाली उस खंड में प्रविष्ट हुई। दो परिचारिकाएं जो वहां खड़ी थीं, वहां से दूर चली गयीं ।
बिंबिसार का ध्यान टूटा। उसने देखा, आम्रपाली सादे वस्त्रों में बहुत ही आकर्षक लग रही है । आम्रपाली बिंबिसार के पास बैठ गयी ।
उसी समय एक दासी खंड में प्रविष्ट हुई। उसने देखा, महाराज महादेवी के दोनों हाथ पकड़े हुए हैं। वह चौंकी क्योंकि उसने इससे पूर्व कभी भी देवी को इस प्रकार पुरुष के साथ एक आसन पर बैठे नहीं देखा था, और कोई भी पुरुष आज तक देवी के हाथों का स्पर्श भी कर नहीं सका था। आज का दृश्य दासी के लिए आश्चर्यकारी था । वह हल्का-सा 'खखारा' कर आगे बढ़ी ।
आम्रपाली ने दासी की ओर देखा ।
दासी ने मस्तक झुकाकर कहा - "देवि ! भोजन की व्यवस्था पास वाले खंड में की है ।"
फिर बिंबिसार और आम्रपाली - दोनों भोजन करने गए और निवृत्त होकर अपने-अपने खंड में आ गये ।
लगभग दो घटिका के बाद आम्रपाली सोलह शृंगार कर तैयार हो गयी । उसने दर्पण में देखा स्वयं वह अपना रूप देखकर चौंकी । उसने अपना ऐसा रूप पहले कभी नहीं देखा था। उसने सोचा, स्वामी को प्रथम बार मिलने जाती हुई प्रत्येक पत्नी का रूप क्या इस प्रकार खिल उठता है ?
रात बीत रही थी ।
आज पिउमिलन की प्रथम रात्रि थी। दोनों ने अपने-अपने पूर्व जीवन की रामकहानी कह सुनायी । रात्रि का चतुर्थ प्रहर चल रहा था । बाहर मंद-मंद वर्षा हो रही थी ।
फूलों की शैय्या पर दोनों बैठे और "।