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अलबेली आम्रपाली
११.३
प्रयोग करने पड़ेंगे तू घबराना मत संशय मत रखना । तेरे जीवन को कोई भी आंच न आ पायेगी, मैं तुझे ऐसा विश्वास दिलाता हूं।"
"गुरुदेव ! आपमें मेरी अगाध श्रद्धा है यदि प्रयोगकाल में मेरी मौत भी हो जाए तो मुझे उसकी चिंता नहीं है । आप मेरे पर जो भी प्रयोग करना चाहें, उसे निःसंकोच रूप से करें ।" कादंबिनी ने शांत स्वरों में कहा ।
कादंबिनी के ये शब्द सुनकर आचार्य का हृदय कांप उठा । कितना विश्वास ! और इसके अजोड़ विश्वास का कितना भयंकर परिणाम ! किन्तु क्या हो ? कोई भी स्त्री स्वेच्छा से ऐसे प्रयोग तो करना भी नहीं चाहेगी, क्योंकि विषकन्या होने के पश्चात् वह किसी पुरुष से प्रेम नहीं कर सकती किसी के प्रति प्रेमभाव हो भी जाए तो भी उसे मन मारकर बैठना होगा। मन की समस्त सुनहरी आशाओं का बलिदान कर उसे अपना कर्त्तव्य मात्र निभाना होगा ।
आचार्य कुछ क्षणों तक मौन हो गए. फिर बोले – “पुत्रि ! तेरे साहस को धन्य है तेरे प्रति मेरी श्रद्धा और अधिक प्रगाढ़ हुई है । अब तू आंखें बंद कर दे । केवल जीभ को बाहर निकाल कर निश्चिन्त बैठ जा । जब तक मैं न कहूं तब तक आंखें मत खोलना ।"
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“जी” कहकर नवयुवती कादंबिनी ने अपनी आंखें मूंद लीं और जीभ बाहर निकाल कर निश्चल बैठ गयी ।
आचार्य ने पहले घटिकायंत्र की ओर देखा फिर अपने प्रिय शिष्य शिवकेशी की ओर देखकर कुछ संकेत किया। तत्काल शिवकेशी मिट्टी का एक बंद पात्र लेकर आया और उस पात्र को आचार्य के हाथों में दे पास में रखे दूध से भरे घड़े को अपने हाथों में उठा लिया ।
आचार्य ने कादंबिनी के जीभ के पास मिट्टी के पात्र को ला उसका ढक्कन खोला और एक-दो क्षणों में ही उसमें से एक नाग ने अपना मुंह बाहर निकालकर कादंबिनी के जीभ पर डंक मारा ।
सर्पदंश होते ही कादंबिनी चीख उठी और उसकी आंखें खुल गईं वह कुछ भी नहीं समझ सकी क्योंकि वह मिट्टी के पात्र को देखे उससे पूर्व ही उसका ढक्कन बंद कर दिया गया था। शिवकेशी ने औषधियों से सिद्ध किये हुए गाय के दूध को कादंबिनी के मस्तक पर डालना प्रारम्भ किया और तब तक डालता रहा जब तक कि वह घड़ा आधा खाली नहीं हो गया ।
आचार्य बोले - " पुत्रि ! जरा भी अस्थिर मत होना प्रयोग का प्रारम्भ बहुत सफल रहा है ।"
काबिनी कुछ नहीं बोल सकी शरीर को दूध से नहला रही थी
मस्तक पर पड़ने वाली दूध की धारा सारे जब वह घड़ा आधा खाली हो गया तब