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अलबेली आम्रपाली १११
"अभ्यास के साधन ?" कादंबिनी आगे कुछ नहीं बोली।
गुरुदेव ने कहा-"प्रयोगशाला का पिछला भाग तो अति भयंकर प्राणियों से भरा पड़ा है। पर वे किसी का अहित नहीं करते।"
विषधरों की अनगिन संख्या देखकर कादंबिनी घबरा गयी। पर वह मौन ही रही।
उसने पूछा-"गुरुदेव ! राजनीति का अभ्यास कब से आप...?"
"पुत्रि ! राजनीति के अभ्यास से भी उसकी प्रारंभिक तैयारी बहुत कठिन होती है।"
कादंबिनी समझी नहीं, इसलिए वह प्रश्नभरी दृष्टि से गुरु की ओर देखने लगी।
आचार्य बोले-"पुत्रि ! राजनीति में कुशल होने वाले व्यक्ति के आस-पास अनेक जोखम खड़े हो जाते हैं। राजनीतिज्ञ पुरुष का जीवन सदा जोखिम में ही रहता है।"
"जोखिम ?"
"हां, पत्रि! राजपुरुष लोगों के लिए आपदाओं के वातूल होते हैं। मैं तुझे राजनीति का अभ्यास कराने से पूर्व तेरे शरीर को कोई भी विष हानि न पहुंचा सके, ऐसा करना चाहता हूं।"
"गुरुदेव ! राजनीति और विष'.? कुछ भी समझ में नहीं आता।"
"पुत्रि ! राजनीतिज्ञ सत्य-असत्य से अछूते होते हैं। राजप्रपंच उनके लिए एक खेलमात्र होता है । अनेक बार वे दूसरों के हितों को कुचलने की इच्छा लिये होते हैं, क्योंकि राजनीतिज्ञ पुरुष, जिनके लिए काम करते हैं, उनके प्रति ही वफादार होते हैं। ऐसी स्थिति में उनके चारों ओर शत्रुओं का सदा घेरा बना रहता है। चतुर राजनीतिज्ञ वह होता है जो इस घेरे को तोड़ने में समर्थ होता है। कभी-कभी वह शत्रु के हाथों में फंस जाता है और उसे विष-प्रयोग से गुजरना पड़ता है। उसका निश्चित परिणाम होता है-मृत्यु । मैं तुझे राजनीति में कुशल बनाना चाहता हूं। मैं तुझे मगधेश्वर के एक प्रधान अंग के रूप में देखना चाहता हूं। पर तू किसी शत्रु के विष-प्रयोग का शिकार न बने, यह चाहता हूं। इसलिए सबसे पहले मैं तेरी स्वर्णिम काया को ऐसी दृढ़ बना देना चाहता हूं कि वह समस्त प्रकार के विषों का प्रतिकार कर सके और मौत को भी पचा ले।" ___ कादंबिनी को इन शब्दों को सुनकर आश्चर्य हुआ। वह केवल चौदह वर्ष की थी, परन्तु एक वेश्या के घर बड़ी होने के कारण उसमें प्रवीणता और चंचलता स्वाभाविक रूप में विकसित थी। वह बोली-“गुरु देव ! विष का असर न हो, ऐसा मैंने किसी के पास कभी नहीं सुना।"
आचार्य ने हंसते-हंसते कहा-"अभी तू छोटी है । नृत्य-गीत के तेरे छोटे से