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अलबेली आम्रपाली १०६
कुछ समय बीता। आम्रपाली जागती हुई शय्या पर पड़ी थी। शैय्या पर बिछे सारे फूल चरमराकर अस्त-व्यस्त हो गए थे।
आम्रपाली के कण्ठ में शोभित माला के मुक्ता टूटकर शैय्या पर बिखरे पड़े थे।
उस श्रावणी भीनी रजनी में भी आम्रपाली के कपोलों पर श्रम से उत्पन्न प्रस्वेद के दो-चार बिन्दु मोती के समान चमक रहे थे। ___ आम्रपाली ने अपनी जीवन-गाथा आगे प्रारंभ कर बिंबिसार को सुनाई और कहा-"प्रिय ! मेरी माता चाहती थी कि मैं किसी राजराजेश्वर की कुलवधू बन्। 'आज उनकी इच्छा पूरी हुई है।"
प्रातःकाल हो गया था। जीवन की प्रथम मधुयामिनी की अंतिम पल विदा होने के लिए तरस रही
थी।
इधर धनंजय और वह भृत्य-दोनों युवराज की खोज में रात-दिन एक कर रहे थे । धनंजय प्रातःकाल से संध्या तक वैशाली के उपनगरों में घूमता-फिरता। उसका भत्य मनु पांथशाला में उदास बैठा रहता । सायं धनंजय जब निराश लोटता तब मनु और अधिक उदास हो जाता। धनंजय ने बसन्त बाजार में युवराज को ढूंढने का निर्णय किया।
देवी आम्रपाली किसी परदेशी वीणावादक के प्रेम में फंस गयी है, यह बात भवन के दास-दासियों से छिपी नहीं रह सकी । ऐसी बात कभी छिपी नहीं रह सकती।
देवी आम्रपाली का यह प्रणयगीत सप्तभूमि प्रासाद की चारदीवारी से निकलकर जन-जन के मुंह पर छा गया।
२४. आशा की एक किरण राजनीति के स्वर्णमय स्वप्न के साथ कादंबिनी को ले जाने वाला रथ आचार्य के आश्रम के मुख्य चौक में खड़ा रह गया।
गुरुदेव को आए देख चार-छहं आश्रमवासी रथ की ओर आए ओर एक अति सुन्दर तरुणी को रथ से उतरते देख सभी आश्चर्य विमूढ़ हो गये। क्योंकि गुरुदेव कभी अकेली स्त्री के साथ आए हों, ऐसा प्रसंग कभी नहीं बना था। वे कभी नहीं चाहते थे कि आश्रम में कोई तरुणी आकर रहे । इसीलिए उन्होंने अपने पाकगृह में पांच-चार अधेड़ औरतों को रखा था। उनके अलावा दो वृद्धाएं और थीं। गुरुदेव यदा-कदा कहते थे-“साधक को यदि अपना ध्येय सिद्ध करना हो और