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११५ अलबेली आम्रपाली
महाराज, महादेवी और कादंबिनी सभी शशक की ओर देख रहे थे । आचार्य ने कादविनी को कहा - " पुत्रि ! इस शशक को दोनों हाथों से पकड़कर इसके मुंह का चुंबन कर ।"
उसने वैसा ही किया । कुछ क्षणों में वह शशक तड़फ कर मर गया । आचार्य बोले - " पुत्रि ! यह तो एक शशक है । परन्तु यदि किसी भी भयंकर नाग को पकड़कर चुंबन लेगी तो उसकी भी यही दशा होगी। इसीलिए मैंने तुझे सावधान रहने के लिए कहा है ।"
यह प्रत्यक्ष प्रयोग देखकर मगधपति और महादेवी आश्चर्यविमूढ़ हो गए... और कादंबिनी।
२६. विचित्र स्वप्न और उसका फल
धनंजय और भृत्य मनु वैशाली में आ गए। उन्हें युवराज बिंबिसार का पता
लग गया ।
आज आम्रपाली का नृत्य होने वाला था। हजारों प्रक्षेक प्रेक्षागृह में एकत्रित हो गये । धनंजय श्री प्रेक्षागृह के पास आया और युवराज की टोह में खड़ा रहा। उसे युवराज कहीं नजर नहीं आये। वह् हताश हो गया और आंखें फाड़फाड़कर चारों ओर देखने लगा । उसे विश्वास था कि युवराज आज अवश्य मिलेंगे । यदि यहां नहीं मिले तो वसन्त बाजार में जाऊंगा। उनका संदेश था कि
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मैं वैशाली में मिलूंगा। उनका कथन अन्यथा नहीं हो सकता ।
वह अनेक कल्पनाएं कर ही रहा था कि एक परिचारिका ने निकट आकर कहा - " श्रीमन् ! आप ही धनंजय हैं ?"
उसने तत्काल परिचारिका की ओर देखकर सोचा, कैसे पहचान लिया । वह बोला - "क्यों ?"
"आचार्य जयकीर्ति आपको बुला रहे हैं।"
"कहां हैं ?"
"मेरे पीछे-पीछे आ जाएं", कहती हुई परिचारिका नंदिनी आगे बढ़ी ।
धनंजय उसके पीछे-पीछे चलते हुए सप्तभौम प्रासाद की तीसरी मंजिल पर पहुंचा। चौथी मंजिल पर पहुंचते ही अतिथि निवास के द्वार पर बिंबिसार को खड़े देखा ।
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धनंजय उस निवासस्थान के वैभव और सौन्दर्य को देखकर आश्चर्य अभिभूत हो गया । उसने सोचा, क्या युवराज यहां के अतिथि बने हैं । जो युवराज आम्रपाली के नृत्य को देखना निरर्थक और सारहीन समझते थे, क्या वे उसके अतिथि।
एक आसन पर बैठने का संकेत कर बिंबिसार ने धनंजय से कहा - " मित्र !