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१९४ अलबेली आम्रपाली
बीच में ही मगधेश्वर बोल पड़े - "यह भय निरर्थक है ।"
"महाराजा ! महादेवी के प्रति जो आपका विश्वास है, वह मेरे से छिपा नहीं है । किन्तु स्त्री में यह एक महान दोष होता है कि वह महत्त्व की बात को पचा नहीं पाती ।"
"मन्त्रीश्वर ! महादेवी का पेट सागर के समान गहरा है ।"
"महाराज ! इस बात से मैं इनकार नहीं होता। मैं तो केवल स्त्री जाति के स्वभावगत दोष की बात ही कहता हूं। राजनीतिज्ञ पुरुष को ऐसी बातों की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए ।"
"अच्छा, एक-आध सप्ताह के बाद कादंबिनी को यहां बुला लेंगे ।" मगधेश्वर ने कहा ।
"व्यवस्था मैंने कर दी है। उसकी देखरेख करने वाले सैनिक नपुंसक हैं । उसकी सेवा के लिए चतुर और वृद्ध परिचारिकाओं की नियुक्ति भी कर दी है ।"
“उत्तम ं‘‘परन्तु ं''।” "परन्तु क्या ?"
"कादंबिनी जैसी निर्दोष और गुणवती युवती को '
बीच में ही महामन्त्री ने कहा- "महाराज ! राजनीति सदा निर्दय होती है । उसमें किसी के प्रति लगाव नहीं होता । राजनयिकों की दृष्टि केवल स्वार्थसिद्धि में केन्द्रित होती है, नीति में नहीं ।"
"तुम जो कहते हो, वह सत्य है । तुम विषकन्या का प्रयोग पहले-पहल कहां करना चाहते हो ?” महाराज ने पूछा ।
मन्त्री बोला – “विषकन्या का पहला शिकार शंबुक राक्षस होगा ।"
"किन्तु, उसके अभेद्य वन- प्रदेश में... | "
"महाराज ! कार्यसिद्धि महत्त्व की बात है, उपाय हजार हो सकते हैं । आप निश्चिन्त रहें | कादंबिनी एकाध महीना यहां रहेगी, फिर मैं उसका उपयोग करूंगा । उस अन्तराल में मैं उसे कुछ रहस्य समझा दूंगा ।" महामन्त्री ने कहा । प्रसेनजित महामन्त्री के विचारों से सहमत हुए और दोनों मंत्रणागृह से निकले 1
बाहर
राजा राजकार्य से निवृत्त होकर अन्तःपुर में आये । वे अपनी प्रियतमा रानी त्रैलोक्यसुन्दरी से बोले -- "महामन्त्री कादंबिनी को आश्रम में रखना नहीं चाहते। उनका मानना है कि गुप्तशस्त्र नजरों से दूर नहीं रहना चाहिए ।" त्रैलोक्य सुन्दरी महाराजा से बोली - "महाराज ! महामन्त्री की बात सत्य है | कादंबिनी को यहीं रखना चाहिए।"
एकाध सप्ताह के बाद अनमने भाव से कादंबिनी अपने लिए पूर्व निर्धारित