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अलबेली आम्रपाली १२७
और जिसके मस्तक पर मगध के साम्राज्य का मुकुट रखने का स्वप्न रानी त्रैलोक्यसुन्दरी देख रही थी उसका एकाकी पुत्र दुर्दम कादंबिनी के नृत्य को देखने के लिए तड़प रहा था। . और एक दिन दुर्दम देश बदलकर अपने पांच-सात मित्रों के साथ कादंबिनी के निवास स्थान पर जा पहुंचा। उसने देखा कि कादंबिनी का नृत्य देखने के लिए हजारों दर्शक वहां उपस्थित हैं । दुर्दम भी उस प्रेक्षागृह के एक ओर अपने साथियों के साथ बैठ गया। ___आसपास में बैठे लोग कादंबिनी के विषय में अनेक प्रकार की बातें कर रहे थे। कोई कहता, 'कादंबिनी स्वर्ग की अप्सरा है और वह शापग्रस्त है।" कोई कहता, "कादंबिनी कामरूप देश का त्यागकर यहां आई है और मगधेश्वर इसे राज्य की महान् नर्तकी के पद-गौरव पर प्रतिष्ठित करना चाहते हैं।" कोई कहता, "इसका पूर्व पति यक्ष है । वह इसकी रक्षा करता है । यह यक्ष-पत्नी है।" ___ दुर्दम सारी बातें सुन रहा था। उसने अपने एक मित्र से पूछा-"क्या कादंबिनी यक्ष-पत्नी है ?"
"नहीं, महाराज ! यह तो पन्द्रह-सोलह वर्ष की सुन्दरी है । लोग ऊटपटांग बातें करते हैं। मैंने तो यह भी सुना है कि यह नागकन्या है।
दुर्दम कुछ उत्तर दे, उससे पूर्व ही पटोत्थान हुआ। सरोवर का किनारा । चारों ओर बड़े-बड़े वृक्ष। __ और सरोवर से एक सहस्रदल कमल निकला और सबने देखा कि उस कमल की कोमल पंखुड़ियों के बीचोंबीच कादंबिनी बैठी है। वह धीरे-धीरे कमल से बाहर निकली। वह जलपरी-सी लग रही थी। उसकी वेशभूषा भी वही थी। उसका रूप-सौन्दर्य पुरुष को अन्धा बनाने में समर्थ था। वह अलबेली थी। ___ जल सुन्दरी के अभिनय को देखने में दुर्दम तन्मय हो गया। यदि प्रकृति आंख से रूप को पीने की शक्ति दे पाती तो आज दुर्दम कादंबिनी के रूप को आंख से पी जाता।
नृत्य समाप्त हुआ । लोगों ने जय-जयकार किया।
दुर्दम का एक मित्र वहीं प्रेक्षागृह में रुक गया। उसने अवसर देखकर कादंबिनी की एक वृद्ध दासी से मेल-जोल किया। उसे उपहारों का प्रलोभन देकर कहा-“एक बार तुम मेरे स्वामी को कादंबिनी से मिला दो। वे तुझे मालामाल कर देंगे।" पहले तो वृद्धा ने आनाकानी की। फिर बहुत समझानेबुझाने के पश्चात् उसने कहा- "देवी किसी से एकान्त में नहीं मिलती। उन्हें अपनी मर्यादा रखनी होती है। फिर भी वे एकान्त में कुछ क्षण निकाल सकें, यह मैं कोशिश करूंगी।"