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अलबेली आम्रपाली १०३
उस रूपकला को देखकर मगधेश्वर आश्चर्यचकित रह गए। उनके वृद्ध नयन भी चमक उठे।
आचार्य अग्निपुत्र ने पहली ही नजर में यह विश्वास कर लिया कि यह कन्या उनकी कल्पना से भी अधिक सुंदर है।
कादंबिनी रानी के पास खड़ी थी। आचार्य ने पूछा-"बेटी ! तू कहां की है ?"
कादंबिनी मौन रही। रानी ने कहा- "कादंबिनी! ये महापुरुष हमारे गुरु हैं। ये जो पूछे उसका निःसंकोच रूप से जवाब दे।"
कादंबिनी ने नीची दृष्टि कर कहा- "मुझे पता नहीं, मैं कहां की हूं। मैं जब पांच वर्ष की थी तब चंपा नगरी आ गई थी।" ___ आचार्य ने देखा, कन्या की वाणी बहुत ही मधुर है। उन्होंने पूछा- "तूने और क्या-क्या अभ्यास किया है ?"
"नृत्य, संगीत और कामशास्त्र का अभ्यास मुझे कराया गया है।"
"उत्तम...।" आचार्य प्रसन्न स्वरों में बोल उठे । उन्होंने फिर मगधेश्वर से कहा-"महाराज ! मैं आज ही इसे अपने आश्रम में ले जाऊंगा।"
कादंबिनी ने रानी की ओर देखा । रानी ने उसकी दृष्टि को समझकर कहा-"कादंबिनी ! गुरुदेव तुझे विशेष अभ्यास करायेंगे। वहां तुझे कोई भय नहीं रखना है।"
मगधेश्वर के मन में यह क्षणिक विचार आया-ऐसे सुंदर फूल को विषकन्या बनाने के बदले. पर वे मौन रहे । उनका समग्र मन कादंबिनी के उभरते यौवन में अटक गया। ___ आचार्य ने कादंबिनी की ओर देखकर कहा-"पुत्रि ! तुझे मेरे आश्रम में तीन माह रहना पड़ेगा' 'फिर तू राजमहल में आ जाना।"
"जैसी आज्ञा।"... अनमने भाव से कादंबिनी बोली। मगधेश्वर ने प्रश्न किया- "आप इसे आज ही ले जाना चाहेंगे?"
"हां, महाराज ! आज का दिन उत्तम है । आज से ही मैं अपना कार्य शुरू कर दूंगा।" फिर रानी की ओर देखकर कहा-"महादेवि ! आप कादंबिनी को तैयार करने की आज्ञा दें।"
रानी ने ताली बजाई । मुख्य दासी खंड में प्रविष्ट हुई। रानी ने कहा"कादंबिनी को तू ले जा। अभी-अभी इसे आश्रम में भेजना है। इसकी तू तैयारी
कर।"
"जैसी आज्ञा।' कहकर दासी ने कादंबिनी की ओर देखा।
कादंबिनी ने सभी को नमस्कार किया और दासी के साथ खंड से बाहर निकल गई।