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अलबेली आम्रपाली १०१ चार दासी - कन्याओं को प्राप्त भी किया था । किंतु आचार्य को उनमें से कोई भी दासी कन्या उपयुक्त नहीं लगी । आचार्य ऐसी सुंदर कन्या चाहते थे जिसके नयनपल्लवों पर कामण क्रीडा करते हैं, जिसको देखकर पुरुष बेभान ही न हो जाए, पर उसके अधीन होने में अपना गौरव समझे ।
ऐसी कामनगारी सुंदरी होती मगधेश्वर अपने कतिपय शत्रुओं को यमसदन के अतिथि बना सकते थे और इसी के आधार पर शंबुकराज को परास्त कर उसके अधीनस्थ संपत्तिशाली वन- प्रदेश को अपने राज्य में मिला सकते थे ।
रानी त्रैलोक्यसुंदरी ऐसी कन्या की खोज चारों ओर करने लगी । उसने यह निश्चय किया कि श्रावणी पूर्णिमा को चंपा में आयोजित होने वाले मेले से ऐसी कन्या प्राप्त करने का प्रयास किया जाए। क्योंकि श्रावणी पूर्णिमा को चंपा में प्रतिवर्ष एक विशाल मेले का आयोजन होता था और उस समय वहां हजारों दास-दासियों का क्रय-विक्रय होता था । रानी ने अपनी प्रिय सखी श्यामांगा को पांच-सात व्यक्तियों के साथ उस मेले में भेजा और किसी भी मूल्य पर ऐसी सुंदर दास-कन्या को लाने का आदेश दिया ।
श्यामांगा मेले में गई, पर उसे वहां सफलता नहीं मिली। उसने खोज चालू रखी। अंत में एक वारयोषिता के भवन से चौदह वर्ष की कामनगारी कन्या को उसने दस हजार स्वर्णमुद्राओं में खरीदकर राजगृह की ओर प्रस्थान कर दिया ।
उस कन्या को देखते ही रानी चौंकी । उसे अपने नवयौवन की स्मृति हो आई। उसने मन-ही-मन सोचा - यदि आचार्य को यह कन्या पसंद नहीं आएगी तो फिर संसार में कोई भी सुंदर कन्या उनको योग्य नहीं लगेगी ।
त्रैलोक्यसुंदरी स्नेहपूर्वक कन्या के पीठ पर हाथ रखते हुए पूछा - " पुत्रि ! तू भाग्यवती है ! तेरा नाम क्या है ?"
'महादेवि ! आपने मुझे नरक से मुक्त कर मेरे पर महान् उपकार किया है । मेरा नाम कादंबिनी है ।
वह मधुर - मंजुल स्वर में बोली
"सुंदर नाम !" कहकर रानी ने श्यामांगी से कहा - "देख, जब तक आचार्य न आएं तब तक इसे अपने पास रखना । इसके साथ दासी का व्यवहार न हो, इसका ध्यान रखना ।"
श्यामांगी बोली - " महादेवी ! आपने जिसे पुत्री के संबोधन से संबोधित किया है, उसकी मैं प्राणों की भांति रक्षा करूंगी।"
रानी ने श्यामांगी को उचित पुरस्कार देकर विदा किया ।
श्यामांगी और कादंबिनी के चले जाने पर रानी की मुख्य परिचारिका ने रानी से कहा - "महादेवी ! कादंबिनी को यहां रखना उचित होता ।"
"क्यों ?"
"हम उसकी ठीक तरह से देखभाल कर लेतीं ।"