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अलबेली आम्रपाली ६९
आम्रपाली बोली-"प्रियतम ! इस अनन्त आकाश के चंदोवा के नीचे आप मुझे...।"
"प्रिये...!" कहकर बिंबिसार ने आम्रपाली को अपनी बाहों में जकड़ लिया। पीछे के बाड़े में बंधे हुए दोनों अश्व हिनहिनाने लगे।
और वातावरण को रंग डालने वाली रंगहिंडोल राग की स्वर तरंगें अभी भी अपनी मधुरिमा को बिखेर रही थीं।
२१. वैशाली की ओर प्रात:काल का धुंधला प्रकाश विश्व को नवचेतना प्रदान कर रहा था। प्रशांत वायु समग्र प्राणियों को पुलकित कर रहा था। ___ आसपास की डाली पर बैठे हुए पक्षी कलरव कर रहे थे । आकाश नीरव
बिबिसार बोला-"प्रिये ! आज मैं धन्य बन गया। मुझे स्वप्न में भी यह कल्पना नहीं थी कि तेरी जैसी स्वर्ग सुन्दरी मेरे प्राणों को सौभाग्य से भर देगी।"
आम्रपाली मौन रही। बिबिसार ने कहा-"कोई शुभ दिन देखकर हम विवाह कर लें।"
"स्वामिन् ! नर-नारी का मिलन यही तो विवाह है। हमारा विवाह तो आज ही हो गया''गगनमण्डप के नीचे प्रकृति की साक्षी से रंगहिंडोल राग के महामन्त्र से 'अब विधि की कोई जरूरत नहीं है। 'नारी अपने जीवन में एक ही बार समर्पित होती है । 'आज मैं समर्पित हो गयी हूं.. और एक विडम्बना नहीं होती तो..."
"कैसी विडम्बना?"
"आर्य ! जनपदकल्याणी विवाह के बन्धन में बंध नहीं सकती। जनपदकल्याणी का पद-गौरव नारी के लिए अभिशाप रूप होता है । मैं अपनी आशाओं और अरमानों की राख पर बैठी हुई एक अभिशप्त नारी हूं.. फिर भी मैं अपने प्रियतम की प्रिया बनकर रह सकती हूं.''यह मेरी विडम्बना आप...।"
___ "प्रिये ! तेरी विडम्बना का समाधान निकल जाएगा, किन्तु मैं एक मागध हूं. वैशाली के लिच्छवियों को जब यह ज्ञात होगा कि तुम्हारे घर मगधपति का पुत्र है, तब क्या' ।"
"यह कोई नहीं जान पाएगा.''आप तो मेरे लिए जयकीति ही रहेंगे।" ___ बिंबिसार ने आम्रपाली को बाहुबन्धन से मुक्त कर कहा-"पाली ! अब हम गंधर्व विवाह की एक विधि सम्पन्न करें।"