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१८ अलबेली आम्रपाली
बिंबिसार को अत्यन्त हर्ष हुआ। उसकी सधी अंगुलियां रंगहिंडोल राग के सूक्ष्मतम भावों को उकेरने लगी और तब बिबिसार ने राग की अन्तिम सूक्ष्म लहरी को तरंगित किया। ___ यह स्वर लहरी आम्रपाली के नृत्य-मस्त प्राणों को बींध गयी। वह अचानक एक लता की भांति बिंबिसार के चरणों से लिपट गयी और बोली- "प्रियतम ! क्षमा करें. अब मैं राग के अनुराग को सहन नहीं कर सकती।"
बिंबिसार ने तत्काल वीणा को एक ओर रख दिया और सुन्दरी के मस्तक पर हाथ रखकर कहा-"राजकुमारी।" ___ "मैं राजकुमारी नहीं हूं प्रियतम ! मैं राजकुमारी नहीं हूं। मैं हूं वैशाली की जनपदकल्याणी आम्रपाली । आपकी दासी' 'कुमार ! मेरी प्रतीज्ञा पूरी
करें।"
ये शब्द सुनकर बिंबिसार चौंका। क्या यह संसार की सर्वश्रेष्ठ सुन्दरी आम्रपाली है ? ओह ! इसे मैं पहचान नहीं सका। वह मधुर स्वर में बोला"देवि ! उठे.."इस पथरीली भूमि पर।"
बीच में ही आम्रपाली बोल उठी-"प्रियतम ! मेरी प्रतिज्ञा...।" "आपकी प्रतिज्ञा?" कहकर बिंबिसार ने आम्रपाली को उठाया।
आम्रपाली बोली-"हां, मेरी प्रतिज्ञा है कि जो व्यक्ति वीणा के तीनों ग्रामों पर राग आन्दोलित करे और भान भूलकर मुझे नृत्य करना पड़े तो उस कलाकार के चरणों में मुझे अपना सर्वस्व अपर्ण कर देना है।"
"देवि !" __ "नहीं, मुझे दासी कहें, प्रिया कहें।" कहकर आम्रपाली ने बिंबिसार के चरण पकड़ लिये।
"बिंबिसार ने कहा-"देवि ! मैं मालव का जयकीर्ति नहीं हूं। यह मेरा छद्मनाम है देवि ! मैं मागधी हूं.''वैशाली को रौंदने का स्वप्न संजोने वाले मगधेश्वर प्रसेनजित का पुत्र बिंबिसार हूं।"
"आप श्रेणिक बिबिसार हैं ?" "हां, देवि...!"
"आप ही मेरे प्राणवल्लभ हैं।" कहकर अम्रपाली ने भावभरी नजरों से बिंबिसार की ओर देखा।
बिबिसार खड़ा हुआ । उसने आम्रपाली को दोनों हाथ पकड़कर उठाया और बोला-"सामने देखो, दीपक में तेल समाप्त हो रहा है। बाहर नजर करो, प्रातःकाल की माधुरी फैल रही है। हम अब बाहर चलें।" कहकर बिंबिसार आम्रपाली का हाथ पकड़कर बाहर जाने लगा। दोनों बाहर आये ।