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१०२ अलबेली आम्रपाली
मैंने जानबूझकर ऐसा किया है । भयस्थान से दूर रहना ही अच्छा है । कादंबिनी इतनी सुंदर है कि मगधेश्वर की वृद्ध आंखें भी चौंक पड़ें।" कहकर लोक्यसुंदरी ने भयस्थान स्पष्ट कर दिया।
दासी मौन रही। उसे महादेवी के कथन में तथ्य लगा।
दूसरे दिन आचार्य अग्निपुत्र आ गए। रानी कन्या-प्राप्ति के समाचार उन्हें पहले ही भेज चुकी थी। उसने मगधेश्वर से भी सारी बात कह दी थी।
आचार्य अग्निपुत्र आए। राजा-रानी ने उनका भावभीना स्वागत किया और वहां उपस्थित सभी दास-दासियों को खंड से बाहर चले जाने का आदेश दिया। ___ आचार्य एक स्वर्णिम आसन पर बैठ गए। राजा और रानी उनके सामने बिछे आसन पर आसीन हुए। आचार्य ने रानी की ओर देखते हुए पूछा"महादेवी ! वह भाग्यवती कन्या कहां है ?"
"अभी-अभी यहां आने वाली है।" महादेवी ने कहा।
आचार्य ने मगधेश्वर की ओर देखते हुए पूछा-"आपने तो कन्या को देखा होगा? क्या वह मेरी कल्पना के अनुकूल है ?" ___ "आचार्यदेव ! मैंने अभी तक उसे देखा ही नहीं।" मगधेश्वर ने उत्तर दिया।
आचार्य कुछ कहें, उससे पूर्व ही रानी ने कहा- "भगवन् ! आप जब उसे देखेंगे तो मुझे आशीर्वाद दिए बिना नहीं रह सकेंगे। उसका रूप स्वर्ग की अप्सराओं को भी लज्जित करने वाला है।"
मगधेश्वर ने रानी की ओर देखा। रानी का चेहरा अत्यंत प्रफुल्लित था। वे कुछ प्रश्न करें उससे पूर्व ही एक दासी उस खंड में प्रविष्ट हुई और हाथ जोड़कर खड़ी रह गई। रानी ने उसकी ओर देखकर पूछा-"क्यों, श्यामांगिनी आ गई ?"
"हां, महादेवी !" "कादंबिनी को यहां भेजना।" दासी तत्काल चली गई। आचार्य ने कहा-"कादंबिनी...?" "उस कन्या का नाम कादंबिनी है।" "नाम सुंदर है।" आचार्य ने कहा। इतने में ही कादंबिनी ने उस खंड में पैर रखे।
आचार्य, मगधेश्वर और महादेवी–तीनों स्थिर दृष्टि से संकोच, लज्जा और भयमिश्रित भाव से आती हुई कादंबिनी को देखने लगे।