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१४. अलबेली आम्रपाली
"आपकी सुकुमारता से।" "तो फिर मैं कौन हूं?" "आप अवश्य ही राजकन्या हैं।"
आम्रपाली खड़खड़ाहट करती हुई हंस पड़ी और हंसती-हंसती बोली"आप कल्पना के खिलाड़ी हैं और कोई कल्पना तो नहीं की है ?"
"दूसरी कोई कल्पना नहीं की है, राजकुमारीजी ! अब आप विश्राम करें।" बिंबिसार ने कहा।
"आराम ! इस भूतिया घर में ?"
"देवि ! आप भय न करें। मैं सारी रात जागकर बिता दूंगा । आप निश्चिन्त होकर सो जायें।" बिंबिसार बोला।
कुछ समय तक इधर-उधर की बातें होती रहीं । आम्रपाली बिंबिसार के व्यवहार और स्नेह से अभिभूत होकर उसके प्रति आकृष्ट हो गयी। उसने मन ही मन सोचा, यह मनुष्य नहीं, देवता है। इसके मन में करुणा है, प्रेम है, दया है, प्यार है।
बिबिसार बोला- "देवि ! आप विश्राम करें । रात बीत रही है । आप मेरे पर विश्वास रखें। आपको किसी प्रकार की आपत्ति नहीं होगी।"
"जयकीर्तिजी ! नारी का मन कितना कोमल होता है, यह आप...।"
बीच में ही बिंबिसार ने सहज स्वर में कहा-"आपका अनुमान सही है। किन्तु नारी के मन का मुझे परिचय नहीं है।"
आधी रात बीत गयी।
आम्रपाली बोली- "आर्य ! अब हम दोनों जागते-जागते रात बिताएं। हम बातें करें और।"
"और क्या ?" "पहले मैं इस पुरुषवेश को उतार दूं...।" "दूसरे कपड़े हैं कहां? यहां तो।"
बीच में ही आम्रपाली बोल उठी—"मेरे पास वे कपड़े हैं। मैं कपड़े बदलकर आपको आवाज दं तब आप उस प्रस्तर-गृह में पड़ी वीणा को लेकर यहां आयें।"
आम्रपाली दूसरे खण्ड में गयी जहां उसकी पोशाक पड़ी थी। उसने सोचा, मेरे पुरुषवेश के कारण इस नौजवान के चित्त में आकर्षण का अमृत नहीं छलक गता । मेरे मूल वेश से इस युवक के निर्मल प्राणों में यौवन की माधुरी उत्पन्न हो सकेगी।
आम्रपाली ने आनर्तक युवक की पोशाक उतारी और भुवन-मोहिनी की