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अलबेली आम्रपाली ९५ पोशाक धारण कर एक शिलाखण्ड पर बैठ गयी। उसने जयकीर्ति को आवाज दी। बिंबिसार हाथ में वीणा लेकर उस खण्ड में आया।
और। शिलाखण्ड पर बैठी भुवनमोहिनी राजकुमारी को देखकर वह चौंक पड़ा।
२०. रंग हिंडोल राग बिंबिसार को देखते ही आम्रपाली बोल उठी-"आइये ! आज की रात हमारे जीवन का एक स्मरण बन जाएगी।"
बिंबिसार सकुचाता हुआ शिलाखण्ड पर बैठ गया और अपनी वीणा एक ओर रख दी।
आम्रपाली बोली-"जयकीर्तिजी ! आपका चित्त...?" "प्रसन्न है । परन्तु एक चिन्ता...।"
"चिन्ता ! किसी प्रियतमा से मिलने की उत्कण्ठा में मैं तो बीच में नहीं आ गयी?" आम्रपाली ने मुस्कराते हुए कहा।
"राजकुमारी ! आप भी कल्पना की खिलाड़ी प्रतीत हो रही हैं। आप आश्चर्य न करें. मेरे जीवन में अभी तक किसी प्रियतमा ने या नारी ने प्रवेश नहीं किया है।"
"तो फिर आधी रात में पुरुष को कैसी चिन्ता ?" __ "मुझे आपकी चिन्ता है । मैं अपरिचित व्यक्ति । आपको कुछ हो गया तो मैं आपको कहां छोडूंगा?" बिंबिसार ने सहज भाव से कहा। __"आप चिन्ता न करें । ऐसे मधुर क्षण जीवन में कब-कहां उपलब्ध होते
बिंबिसार मौन रहा । वह आम्रपाली के तेजस्वी और प्रफुल्ल वदन की ओर देखता रहा। उसने मन ही मन सोचा, इस राजकन्या को अपनी वर्तमान परिस्थिति की कोई चिन्ता नहीं है। यह नारी कौन होगी ? ऐसे अनजान प्रदेश में एक अपरिचित व्यक्ति के समक्ष इसके बदन पर आनन्द और परिहास की रेखाएं उभर रही हैं।
आम्रपाली बोली-'आप किसी नारी के परिचय में नहीं आये, इस बात को जाने दें। क्या आप कल मेले में गये थे ?"
"हां...!" "तब तो आपने आम्रपाली का नृत्य अवश्य देखा होगा?" "नहीं।" "क्यों ? क्या किसी द्यूतक्रीड़ा में फंस गये थे ?"