________________
अलबेली आम्रपाली ८१
छोड़ा। उसका एकमात्र लक्ष्य था दौड़ते हुए हाथी के दोनों पैर । यदि यह प्रयत्न निष्फल होता है तो उसकी मौत निश्चित थी।
किन्तु राक्षसराज की शिक्षा निष्फल नहीं गयी। हाथी के दोनों पैर एक साथ बाणों से बिंध गए और उसने अतुल पीड़ा से चिंघाड़ा।
क्रोध राक्षस का दूसरा रूप है। क्रोध के समय बल बढ़ जाता है और वह तब अन्धा होता है।
हाथी के क्रोध की सीमा न रही। शत्रु को पीस डालने के लिए गजराज उछला। किन्तु अति क्रोध और पीड़ा के कारण वह लड़खड़ाकर भूमि पर गिर पड़ा।
बिबिसार ने देखा, अब गजराज उठ नहीं सकेगा। बिबिसार हाथी की दृष्टि से बचता हुआ दूसरी दिशा में चला गया।
पीछे आने वाले सैकड़ों व्यक्तियों ने गजराज को निढाल पड़ा देखा और तब उस नवजवान को हजार-हजार धन्यवाद दिए । उस भीड़ में इसी हाथी के दो महावत भी थे। वे धरती पर पड़े हाथी के पास गए।
धनंजय ने स्वामी को देखा। उसके नयन हर्ष से सजल हो गए । वह स्वामी के पास आकर बोला- "मेरे पाण-पखेरू ऊपर चढ़ गए थे।"
"क्यों ?" बिंबिसार ने पूछा। "आपने भयंकर साहस कर डाला था...?" "साहस के बिना जीवन कसा?"
इतने में अनेक व्यक्ति वहां आ पहुंचे और युवक बिबिसार का अभिवादन करने लगे । एक युवक ने पूछा-"क्या आप मागध हैं ?"
"नहीं मैं, मालवीय हूं।" बिबिसार ने तत्काल उत्तर दिया। इतने में ही दूसरे युवक ने पूछा-"परन्तु आपकी वेशभूषा तो...?"
आपका अनुमान सही है । मैं पांच वर्षों से मगध में धनुर्विद्या सीख रहा हूं, इसलिए मगध की वेशभूषा है।" बिबिसार बोला।
अनेक बार कारणवश असत्य का आश्रय लेना पड़ता है। बिंबिसार जानता था कि लिच्छवियों और मागधों के बीच विसंवाद है। कोई भी लिच्छवी मगध के मनुष्य की प्रशंसा नहीं कर सकता। लिच्छवियों को यह पूरा विश्वास था कि मगधपति वैशाली के विनाश का निरन्तर स्वप्न देखते रहते हैं और अवसर की टोह में हैं । अवसर मिलते ही वे वैशाली को विनष्ट कर देंगे। किन्तु लिच्छवियों की एकता को देखकर वे आक्रमण करने का साहस नहीं कर पा रहे थे। इस परिस्थिति में बिबिसार को अपने आपको छुपाने के लिए असत्य बोलना पड़ा।
सभी ने देखा, गजराज के प्राण पखेरू उड़ गए हैं। वह ठंडा हो गया है। दोनों महावत उसके पैरों से बाण खींच रहे हैं । यह देखकर लोग लौटने लगे।