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२४ अलबेली आम्रपाली
आज मेले की अनोखी रात। _ विश्व की सर्वश्रेष्ठ सुन्दरी आम्रपाली अपने नृत्य से हजारों-हजारों को मंत्रमुग्ध कर रही थी। बिंबिसार उस ओर जाना नहीं चाहता था, पर उसका मार्ग उस नृत्य-रंगमंच के सामने से गुजर रहा था। विशाल मार्ग भी आज संकीर्ण हो रहा था।
बिबिसार ने उस रंग-मण्डप की ओर दृष्टि डाली। उसने जो देखा उससे उसका मन टूक-टूक हो गया। उसने सोचा, किसी भी महान् जाति का विनाश स्वच्छन्दता के मीठे जहर से ही हुआ है, होता है । जहां स्वच्छन्दता होती है वहां स्वाधीनता पंगु बन जाती है । वैशाली की जनता ऐसे रंगीले मेले से पागलसी बन गयी थी। नगरनारियों, नर्तकियों, वारांगनाओं, विलास के उपादानों और असंयम की ज्वालाओं में जो प्रजा सुख देखती है, वह कितनी ही वीर और महान् क्यों न हो, उसका पतन होता है । वह मिट्टी में मिल जाती है।
रात्रि का चौथा प्रहर समाप्त होने वाला था। इतने में ही वहां कलरव कानों से टकराया। देवी आम्रपाली के जयनाद से सारा वातावरण गूंज उठा। लोग मनोहारी नृत्य को देखकर आनन्दित हृदय से घर लौट रहे थे।
प्रभात हुआ।
बिबिसार अश्व पर आरूढ़ होकर पहाड़ी की ओर गया। और भूतिया आवास-गृह में पहुंच कर वीणावादन करने लगा।
इधर देवी आम्रपाली अपनी प्रिय दासियों के साथ एक रथ में बैठी हुई, हजारों प्रशंसकों का अभिवादन स्वीकार करती हुई अपने पड़ाव-स्थल पर पहुंची। नृत्य की वेश-भूषा उतारे बिना ही वह शय्या पर सो गयी। ___ कुछ समय पश्चात् आर्य शीलभद्र अपनी मीठी स्वप्निल कल्पनाओं में खोया हुआ वहां आ पहुंचा। वह आम्रपाली से मिला और विनम्र स्वर में बोला"देवि ! एकाध घटिका के बाद ही मृगया के लिए जाना पड़ेगा।"
"क्यों ?"
"मेरे साथी शिकारी आज प्रातः वन में गए थे। वे एक भयंकर वराह के समाचार लेकर लौटे हैं । हमें उसका शिकार करना है।"
"अच्छा, मैं तैयार हो जाती हूं।"
लगभग अर्द्ध-घटिका के पश्चात् आम्रपाली एक तरुण आनत युवक के वस्त्र पहनकर अश्व पर सवार हुई।
आम्रपाली के वेश को देखकर शीलभद्र अवाक् बन गया। उसको देखने पर सबको यही प्रतीति होती कि वह कोई तरुण शिकारी ही है, स्त्री नहीं।"
शीलभद्र बोला- "देवी पुरुषवेश में...।"