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८६ अलबेली आम्रपाली
"वरा- बहुत ही शक्तिशाली और भयंकर प्राणी होता है।"
"हां, देवि ! इसके जैसा दूसरा कोई प्राणी शक्तिशाली नहीं होता। जब तक तीर इसके आर-पार नहीं जाता, तब तक वह मरता नहीं, और तब वह अपने शिकारी को मारे बिना शांत नहीं होता।" शीलभद्र ने कहा।
देवी आम्रपाली कुछ कहे, इतने में ही आगे चलने वाले चारों साथी शिकारियों ने अपने घोड़ों को रोककर कहा-"महाराज! आप इस मार्ग से परिचित हैं, आप आगे बढ़ें। हम वराह को जलाशय की ओर खदेड़ते हैं।" ___ "जलाशय तो वराह के लिए मृत संजीवनी होती है, परन्तु तुम उसे भूतिया आवासगृह की ओर खदेड़ो तो बहुत अच्छा रहेगा। " शीलभद्र ने कहा।
"ठीक है, हम ऐसा ही करेंगे", कहकर चारों अश्वारोही अपने घोड़ों को तीव्र वेग से दौड़ाते हुए आगे बढ़ गए।"
आम्रपाली बोली-"कुमारश्री ! भूतिया आवासगृह वाली पहाड़ी ?" ___ "हां, देवि ! उस मकान में कोई नहीं रह सकता। यदि कोई अनजान व्यक्ति वहां रात को रह जाता है तो उसकी मौत निश्चित है।"
:"ओह !"
"देवि ! आप निश्चिन्त रहें। वहां हमें नहीं जाना है। मैंने जलाशय के पास एक कुटीर तयार करा रखी है..."
"कुटीर..." आम्रपाली ने आश्चर्यभरी नजरों से देखते हुए कहा ।
"मुझे तो शिकार का पीछा करना पड़ेगा 'मैं वापस लौटूं तब तक आप वहां विश्राम कर सकेंगी।" शीलभद्र ने कहा।
"नहीं कुमार ! मैं भी शिकार के लिए ही आई हूं. मेरा निशाना कभी व्यर्थ नहीं जाता।" आम्रपाली बोली।
"देवी ! वराह का शिकार बहुत ही कठिन होता है।" "फिर भी मैं तो साथ ही रहूंगी।"
शीलभद्र दो क्षण आम्रपाली की ओर देखते हुए बोला-"भद्रे ! परन्तु।"
"आर्य ! मैं आपके बाहुबल का परिचय फिर कैसे प्राप्त कर सकेंगी। आप मेरी चिन्ता न करें । मेरा अश्व बहुत तेजस्वी है। मेरे बाण दिव्य हैं ।" आम्रपाली ने सहज स्वर में कहा।
शीलभद्र मुस्कराया। वह बोला- "देवि ! आप मेरे साथ चलें, इसमें मुझे तनिक भी आपत्ति नहीं है परन्तु नारी के नयनबाणों से मनुष्य तो घायल होता है, परन्तु वराह घायल नहीं होता।"
आम्रपाली ने हंसते हुए उत्तर दिया---''आपको तो कोई भय नहीं है ?" "किस बात का?"