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अलबेली आम्रपाली
"नहीं कुमार ! मेरा दिल अब सुकुमार नहीं रहा है आपके कथन का मुझे तनिक भी दुःख नहीं है ।"
उसी समय एक भयंकर चीख कानों को चीरती हुई निकली। दोनों अश्व चौंके शीलभद्र और आम्रपाली भी चौंक उठी । शीलभद्र बोला - "देवि ! सावधान रहें कोई वराह होगा आप अपने अश्व को मेरे साथ ही रखें।" दोनों चले । एकाध दंड की दूरी तय की होगी कि पीछे भूचाल आया हो ऐसी आवाज सुनाई दी । वृक्ष कांप रहे हों, ऐसा दोनों को आभास हुआ । शीलभद्र ने पीछे देखा एक विशालकाय वराह पूर्ण वेग से पीछे भागता हुआ
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आ रहा है ।
शीलभद्र बोला - "देवि ! अब हमें यहां से भागना चाहिए। भयंकर वराह अपना पीछा कर रहा है ।"
देवी आम्रपाली का उत्तर सुने बिना ही शीलभद्र ने अपने अश्व को एक ओर मोड़ा। आम्रपाली का तेजस्वी अश्व भी सामने की दिशा में भागने लगा । भागते-भागते शीलभद्र ने पीछे देखा । आम्रपाली का अश्व उसके पीछे नहीं आ रहा था । वह भूतिया आवास की ओर भाग रहा था । और भयंकर वराह उसका पीछा कर रहा था। अब क्या हो ? आम्रपाली का क्या होगा ? उसको कैसे बचाया जाए ? स्वयं वहां खड़ा रहकर बाण का संधान करे या नहीं ? बाण से वराह मरेगा या नहीं और यदि वह वराह आम्रपाली का पीछा छोड़कर इस ओर आ जाए तो ? तब तो इस निर्जन वन- प्रदेश में ही सारी आशाएं समाप्त हो जाएं...।”
यह सब कैसे हुआ ? तो एक बहाना मात्र था
मैंने ऐसी कल्पना भी नहीं की थी। वराह का शिकार किन्तु वराह आया कहां से ?
इन सभी प्रश्नों के बीच उलझा हुआ शीलभद्र अपनी सुरक्षा की चिन्ता में अत्यधिक व्याकुल हो उठा। वह अपने अश्व को पूर्ण वेग से दौड़ाने लगा ।
किन्तु पहाड़ी की ओर जाती हुई आम्रपाली की स्थिति विषम बन चुकी थी । सघन झाड़ी के कारण वह तेजस्वी अश्व भी पूर्ण वेग से दौड़ने में असमर्थ हो रहा था । पग-पग पर अवरोध आ रहा था और पीछा करने वाले वराह का गर्जारव शरीर के रक्त को हिम की भांति सघन बना रहा था। अब क्या किया जाए ?
कंधे पर पड़ा धनुष केवल शोभारूप बन रहा था। क्योंकि रुककर संधान करने का समय ही नहीं था । यदि यह साहस किया जाए तो संभव है वराह के दांतों से मृत्यु का वरण निश्चित था ।
आम्रपाली अपने अश्व को तेज दौड़ाने लगी। अश्व को भी अपने प्राणों का भय था । वह स्वयं को और अपने स्वामी को बचाने के प्रयत्न में था ।